ऐसा क्यों होता है?
‘ऐसा क्यों होता है?’
मन कभी बहुत कुछ सोचता है,
बहुत कुछ कहना भी चाहता है।
फिर क्यों ओढ़ लेता है मौन,
रोक लेता उसे है बोलो कौन?
शब्द जैसे बर्फ बन जाते हैं,
होंठ क्यों खुल नहीं पाते हैं।
कलम उदासी पी पड़ जाती है,
स्याही उसकी उड़ क्यों जाती है।
पन्ने बस फड़फड़ाते रह जाते हैं,
कोरे ही रहकर उजड़ से जाते हैं।
बिन हवा के ही दीप बुझ जाता क्यों?,
बेवक्त ही कभी दिन ढल जाता क्यों?