ऐंचकताने ऐंचकताने
ऐंचकताने ऐंचकताने
ख़ूब सियाने अन्धे-काने
राजा बोले खुशहाली है
जनता माने या ना माने
सोया कबसे प्यारा जन मन
ऊँचे-ऊँचे ख़्वाब सजाने
बहरे क्या समझेंगे सच को
बेकार लगे हम चिल्लाने
गूंगी-बहरी लचर व्यवस्था
व्यर्थ चले हम अलख जगाने
महावीर उत्तरांचली