ए लड़ी, तू न डर
२३)
“ ए लड़की, तू न डर “
ए लड़की,
तू न डर
आगे बढ़
मुक़ाबला कर।
क्या हो ग़र
संघर्ष में तू जाए मर
यह गर्व तो रहेगा
हार न मानी, न माना डर
ए लड़की, तू न डर॥
ए लड़की
जब तक तू ख़ुद
ना जागेगी
स्वयं इस आग में
ना झुलसेगी
कोई मदद को न आएगा
तू ख़ुद अपनी मदद कर
ए लड़की, तू न डर ॥
स्वरक्षा के
गुर सीख सारे
“असंभव “शब्द
ज़िंदगी से भगा दे
तू दुर्गा है, तू काली है
शत्रु का खून पी सके
बन जबर, हर डगर
ए लड़की, तू न डर ॥
तू कोमलांगी है
पर कमज़ोर नहीं
तू जननी है
पर पतंग डोर नहीं
कोई काट ले, फाँस ले
किसी में इतना ज़ोर नहीं
उठ जाग, संहार कर
ए लड़की, तू न डर ॥
स्वरचित और मौलिक
उषा गुप्ता , इंदौर