” एहसास “
राजीव को किसी काम से एक महीने के लिए दिल्ली जाना पड़ा , पहली बार एक साथ इतने लंबे समय के लिये घर से बाहर जा रहा था…दिल्ली में मौसेरे भाई के घर पर ही रहना था पैसे से भरपूर नौकर – चाकर की कमी नही थी । सुबह सजा सजाया नाश्ता टेबल पर तैयार दोपहर का खाना बाहर और रात को भी कभी सजे सजाये टेबल पर नही तो किसी बढ़िया रेस्तरां में , इन सबके बावजूद हफ्ते भर में ही वो इन खानों से उब गया अब याद आने लगी शमीता की कितने प्यार से दुनियाभर के व्यंजन बना कर खिलाती थी…हिन्दुस्तानी खाना तो कभी भी प्लेट में दिया ही नही बकायदा कटोरियों से सजी थाली ही परोसती थी । उसका मानना था की हमारा हिन्दुस्तानी खाना एक ही प्लेट में एकसाथ डालकर खाने से स्वाद चला जाता है । कभी भी राजीव शमीता की तारीफ नही करता उसको लगता की खाना हमेशा ऐसा ही स्वादिष्ट होता है इसमें कौन सी बड़ी बात है , पार्टी , रेस्टोरेंट और किसी के घर हफ्ते में एक बार खा आये स्वाद बदल जाने पर अच्छा ही लगता था । इतने दिनों तक नौकरों के हाथ का खाना खाकर मन उबने लगा राजीव का नौकरों के हाथ के खाने की आदत जो नही थी , किसी तरह एक महीना बीतने के बाद राजीव अपने घर आया रात के खाने पर सब साथ बैठे सजी – सजाई थाली सामने देख राजीव से रूका ना गया मानों बरसों बाद ऐसा खाना मिला हो चुपचाप खाना खाया चेहरे पर एक संतुष्टि का भाव था हाथ धोकर लिविंग रूम में सबके साथ टीवी देखने लगा । शमीता भी रसोई का काम निपटा कर कोकोनट पुडिंग ( राजीव की फेवरेट ) लेकर वहीं आ गई खाते – टीवी देखते सब बातें करते रहे जैसे ही शमीता ट्रे उठाने के लिए झुकी राजीव ने उसकी हथेली अपने दोनों हाथों से थाम ली और बोला ” तुम वाकई अन्नपूर्णा हो ” ये सुन शमीता के साथ दोनों बच्चों की आँखें आश्चर्य से चौड़ी हो गयीं और राजीव की आँखें पश्चाताप से नीची ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 23/08/2020 )