एम.ए.पास न होता (गीत)
दिन भर करता काम-काज
मैं, रात नींद भर सोता ।
कितना अच्छा होता जो मैं
एम.ए. पास न होता ।।
गांव छोड़कर क्यों मैं रहता
इस शहरी माहौल में ?
क्यों आगे मैं करता खुद को
रोज़गार की दौड़ में. ?
नेताओं के पीछे लगकर
क्यों ईमान को खोता. ?
बड़े भोर उठकर के मैं तो
जाता अपने खेत पर ।
रोटी रख देती फिर माता
सब्जी, चटनी, प्यार भर ।
प्यार भरी वह रोटी खाकर
खेत में गेहूं बोता ।।
श्रमबिंदु लेकर माथे पर
वापस आता शाम को ।
माता के दर्शन से मित्रो
पा जाता आराम को ।
मातृस्पर्श की मृदु-छाया में
सदा प्रफुल्लित होता ।
कितना अच्छा होता जो मैं
एम. ए. पास न होता ।।
ईश्वर दयाल गोस्वामी ।
कवि एवं शिक्षक ।
” यह गीत मैंने अपने विद्यार्थी जीवन में रचा था ।”