#एक_और_प्रयोग:-
#एक_और_प्रयोग:-
■दोहा : आधा तुम्हारा, आधा हमारा।
[प्रणय प्रभात]
■ पुरखे कहते आए-
“घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिद्ध।”
■ मैंने भी जोड़ दिया-
“उन्हें गरुड़ क्या भाएगा? जिन्हें भा रहे गिद्ध।।”
बन गया ना दोहा…!! वो भी हाथों-हाथ। वो भी उन लोगों पर, जिन्हें अपनों की क़द्र नहीं। बेगानों पर लट्टू होने के चक्कर में। “घर की मुर्गी, दाल बराबर” समझने वाले मूढ़। मतलब-
घटिया लोग, घटिया पसंद। या फिर “मलयागिरि के भील।” लकड़ी की जगह चंदन फूंक डालने वाले।
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■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)