एक सूरज उगा रहा हूँ मैं
मुश्किलें हैं, मिटा रहा हूँ मैं ।
एक सूरज उगा रहा हूँ मैं ।।
गर्म आहें घुटन सिसकते पल ।
इन फिजाओं से दूर कुछ बेकल ।
लौट कर जल्द आ रहा हूँ मैं ….
एक सूरज……..।।
स्वप्न टूटे पड़े हुए तो भी ,
क्रूर पत्थर खड़े हुए तो भी ।
काँच के घर सजा रहा हूँ मैं…….
एक सूरज…….।।
रात के इन घने अँधेरों में ,
चन्द जुगनू लिए बसेरों में ।
चाँद तारे उगा रहा हूँ मैं……
एक सूरज……..।।
दर्द जितने मिले मुझे देना ।
आँसुओं के सिले मुझे देना ।
बेंचने प्यार आ रहा हूँ मैं….
एक सूरज……….।।
खुशबुएँ और तितलियों के पर ।
धूप के, छाँव के, हवा के घर ।
एक दुनिया बना रहा हूँ मैं……
एक सूरज………….।।
बुझ गए जो, उन्ही उजालों से ।
और उलझे हुए सवालों से ।
एक चिनगी उठा रहा हूँ मैं….
एक सूरज………….।।
राहुल द्विवेदी ‘स्मित’
लखनऊ
7499776241