‘एक सा तन-मन’
‘एक सा तन-मन’
तुम भी मानव,
हम भी मानव।
एक सा तन है,
एक सा मन है।
फिर क्यों दुर्व्यवहार
करे जन-जन है।
सब हँस के बिता लो,
ये जो क्षण हैं।
कब बार-बार,
मिलता जीवन है।
क्या लाया था,
क्या ले जाएगा।
माटी का तन,
माटी हो जाएगा।
सब तेरे हैं,
तू सबका बन।
एक सा तन है,
एक सा मन है।
फिर क्यों उलझन,
कहती सुलझन।।