एक सच्ची लघु कथा –आर के रस्तोगी
मेरी पत्नि ने कुछ महीने पहले घर की छत पर कुछ गमले रखवा दिए थे और एक छोटा सा बगीचा बना लिया था
पिछले दिनों मै छत पर गया तो ये देख कर हैरान रह गया कि कई गमलो में फूल खिल गये है | नीबू के पौधे में तो नीबू भी लटके हुए है और दो चार हरी मिर्च भी लटकी पाई गयी | मैंने देखा कि पिछले हफ्ते उसने बांस का पौधा गमले में लगाया था ,उस गमले को वह घसीट कर दूसरे गमले के पास कर रही थी |
मैंने कहा,”तुम इस गमले को क्यों घसीट रही हो ? ” पत्नि ने मुझसे कहा, “यहाँ ये बॉस का पौधा सूख रहा है ,इसे खिसका कर दुसरे पौधों के पास कर देते है |”
मै इस पर हंस पड़ा,और बोला, “अरे ! ये पौधा सूख रहा है तो इस मै खाद पानी डालो तो ये फिर से हरा भरा हो जायेगा | दुसरे पौधों के पास जाने से ये क्या हरा भरा कैसे हो जाएगा ?|”
इस पर पत्नि तुनक कर बोली,” तुम्हे क्या पता ,मैंने पिछले हफ्ते इस पौधे में खाद भी डाली थी और पौधों की तरह इस को भी पानी देती थी ,पर यह अभी तक हरा भरा नहीं हुआ बल्कि दिन प्रति दिन यह सूखता ही जा रहा है |
मै इस पौधे के अंदर की बात समझ रही हूँ ,ये पौध बेचारा अकेला है इसलिए ये मुर्झा रहा है | अगर हम इसे दुसरे पौधों का पास कर देगे तो ये फिर से लहलहा उठेगा |पौधे अकेले में सूख जाते है ,लेकिन उन्हें अगर किसी और पौधे का साथ मिल जाये तो वे जी उठते है |
यह बहुत अजीब सी बात थी | एक एक करके मेरीआँखों के सामेने कई तस्वीरे बनती जा रही थी और मै अपने भूत में खो गया था |
माँ की मौत के बाद पिताजी कैसे एक ही रात में बहुत ही बूढ़े से नजर आने लगे थे | हालाकि माँ के जाने के बाद पांच वर्ष तक जीवित रहे पर एक सूखते पौधे की तरह | माँ के रहते हुये जिस पिताजी को मैंने कभी उदास नहीं देखा था वो माँ के जाने का बाद बड़े उदास और खामोश रहते थे |
अब मुझे पत्नि के विश्वास पर पूरा विश्वास हो रहा था | मुझे यह लग रहा था और मह्सूस हो रहा था कि पौधे अकेले में सूख जाते होगे | इसी तरह की एक बचपन की घटना मुझे याद आने लगी | बचपन में मै एक बार छोटी सी रंगीन मछली खरीद कर लाया था और उसे शीशे के जार में पानी भर कर रख दिया था |मछली सारे दिन गुमसुम सी रही |मैंने उसके लिये खाना भी डाला ,लेकिन वह चुपचाप पानी में अनमनी सी घूमती रही | सारा खाना जार की निचली सतह पर जमा हो गया था क्योको मछली ने कुछ भी नहीं खाया था | दो दिन तक वह ऐसी ही रही और एक सुबह मैंने देखा कि वह पानी की सतह पर उल्टी पड़ी थी और वह मर चुकी थी |
आज मुझे घर में पाली वो छोटी सी मछली की याद आ रही थी | अगर बचपन में किसी ने मुझे यह नहीं बताया होता कि सभी जीव जन्तुओ को अपने साथियो की जरूरत होती है | आगे यह मुझे पता होता या कोई मुझे बताता था तो बजार से और चार पांच मछली खरीद कर ले आता और उन्हें इसके पास छोड़ देता और वह मछली इस प्रकार न मरती |
बचपन में मेरी माता जी ने भी बताया था कि मकान मे कभी भी एक दिवार नहीं होती ,चार दीवारो के कारण ही मकान बनता है और वे आपस में बाते करती रहती है और खुश भी रहती है इसलिए कहा भी जाता है दीवारों के भी कान होते अर्थात वे एक दूजे से बाते करती रहती है और सुनती रहती है |मुझे लगता है कि संसार में किसी को अकेलापन पसन्द नहीं है |इसलिए भगवान ने भी काफी चीजे बनाई है और नर मादा भी बनाये जो एक दुसरे के पूरक है |
आदमी हो या पौधा हो ,हर किसी को किसी न किसी की जरूरत होती है |अगर आप अपने आस पास झाकिये और ,अगर कोई अकेला दिखाई दे तो उसे अपने साथ दीजिये उसे मुरझाने से बचाइये | अकेलापन संसार में सबसे बड़ी सजा है |गमले के पौधे को तो हाथ से खीच कर एक दुसरे पौधे के पास किया जा सकता है लेकिन आदमी को करीब लाने के लिये जरूरत होती है रिश्तो को सुलझाने की और समेटने की |
अगर मन के किसी कोने में आपको लगे कि जिन्दगी का रस सूख रहा है और मुर्झा रहा है तो उस में प्यार के रिश्तो से प्यार का रस से भर दीजिये और देखिये कि वह जल्द ही कितना हरा भरा हो जाता है |
आर के रस्तोगी