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16 Feb 2024 · 1 min read

एक शायर खुद रहता है खंडहरों में – पता महलों का बताता है

कहाँ रहता है ऐ शायर- पता – महलों का बताता है
हर्फ़ दर हर्फ़ ज़ाहिर करना भी ख्वाब
को तामीर करने का एक ज़रिया है

कुछ अधूरे ख़्वाब को ख़्वाब में ही
जीने की तमन्ना और कुछ अपने दर्द को
खुद ही खुद के फरेब के मरहम से
कम करने की आज़माइश होती है

कमाल का जादूगर होता है शायर भी बस इज़हार ए तमन्ना करता है
तन्हा ठंढी रातों में, जाग जाग कर
ख्वाब करता है दर्ज़ – कागज पर
लालटेन की रौशनी के आगे

बातें आफ़ताब की सुनाता है
छुपा कंटीले रिश्तों की कहानी
रहता है खुद भी भरम में वो
फ़टे दुशाले से छुपाता है शमशीर के घाव की हर निशानी

शायर भी अजीब बाज़ीगर है
जब भी मज़मा लगाता है
चमकदार पोशाक के पीछे
कालेजा भले ही चाक़ चाक़ हो
कलेज़ा पत्थर का बताता है

खुद रहता है खंडहरों में
पूछा – कहाँ रहता है ऐ शायर
पता – महलों का बताता है

अतुल “कृष्ण’

Language: Hindi
80 Views
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