एक शाम
मुद्दतों बाद दिखी वो एक शाम, इस अजनबी शहर के बाजार में ।
अजनबी, मेरे लिए तो अजनबी शहर ही है । अभी आए 1 महीना भी कहा हुआ था ।
बिल्कुल भी नहीं बदली थी वो उसके ये हर चीज में भाव पर बहस करने की आदत बिल्कुल वैसी की वैसी ही थी । चाहे वो सब्जी मंडी हो या किसी बड़ी दुकान पर से कुछ खरीदना हो । वही तीखी जुबान वाली लड़की । हा यही बुलाता था मैं उसे… तीखी मिर्ची ।
मैने सोचा बात करू या नहीं । कहीं उसने मुझे देखा होगा के नहीं । मैं इतना सोचता कि इतने मे वो मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी । और बोली…hyyyy… तुम यहां ….
उसने दुबारा बोला heloo ….
में हड़बड़ा के बोला…. hi…उसे पता था मेरा बहुत जल्द सोच में पड़ जाना । वो बोली फिर सोच में पड़ गए क्या …..कुछ बोलोगे भी….या हमेशा की तरह मुझे ही बोलना पड़ेगा……! मैं बोला hy कैसी हो , कहा रहती हो , यहां कैसे l वो बोली आराम से सब सवाल एक साथ ही पूछोगे । मैं इसी शहर में रहती हूं । और तुम यहां कैसे l मैं बोला नोकरी लगी है तुम्हारे शहर में , ओह congratulations , मैं thank you कहता उससे पहले वो बोली चाय पियोगे । मेरा घर पास में ही है और वो अपनी सब्जी का एक थैला मुझे पकड़ा कर अपने घर की ओर चल दी ।