एक शाम ऐसी थी
चारों तरफ़ हलचल थी
मैं उदास थी
क्योंकि
कुछ बात थी,
मन ही मन उठ रहे कई सवाल
सवाल के उत्तर देने में
नाकामयाब थी ।
एक शाम ऐसी थी —
देख रहे थे लोग मुझे
देखते-ही-देखते कर गए
आँखों में कई सवाल,
और फ़िर से मैं ज़वाब देने में नाकामयाब
ख़ुद ही ख़ुद अंदर से कुछ ना कह पायी
ख़ुद को अंदर से पहचान रही थी
शांत मन से बैठी थी
एक शाम ऐसी थी …
कह ना सकी खुद से कुछ
क्योंकि कुछ बात थी
फ़िर आयी मुझे घर की याद थी
फिर चल पड़ी घर
जहाँ घरवालों ने भी किए कई सवाल
और एक बार फ़िर
मैं उत्तर देने में थी नाकामयाब।
— ऋतु