एक वृक्ष जिसे काट दो
🙏🙏सादर प्रणाम🙏🙏
एक वृक्ष जिसे काट दो
दहेज का वृक्ष इस कदर जड़ें जमा बैठा है
जैसे उसकी जड़ें पाताल से अपने लिए भोज्य खींच रही हों और इस वृक्ष की शाखाओं ने आसमान को छू लिया हो पत्तियों ने सूर्य को जकड़ कर निचोड़ लिया हो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के लिए स्वयं के फलने फूलने के पूरे इंतजाम कर रखें हों , सभी पढ़े -लिखे ,नौकरी पेशे वालों और धनवानों को खुद के पक्ष में कर लिया हो, जो निरन्तर इसमें समय – समय पर खाद पानी की व्यवस्था कर रहे हैं । और ये वृक्ष विशाल से भी विशाल होता जा रहा है ।इतना विशाल की अपनी छत्र छायाँ में किसी लाभकारी पौधे को पनपने ही नहीं देता । जिसने अपनी शाखाओं की बाँहें इतनी फैला ली है कि कोई बीज कल धरा को फोड़ कर उसकी प्रतिस्पर्धा में न खड़ा हो जाये इसलिए उसने गुणकारी बीजों को भी नष्ट करना प्रारंभ कर दिया है । विकसित भारत की परिकल्पना में ये वृक्ष कभी किसी सरकार को बाधा या अवरोध के रूप में नज़र आया ही नहीं उन्होंने कभी कोई ऐसा ठोस कदम उठाया ही नहीं जो इसकी जड़ो को हिला सके अपितु मजबूत अवश्य किया क्योंकि सरकार में बैठे लोग ही तो इसके परम अनुयायी भक्त हैं वे इसमें खाद पानी के साथ उन सभी आवश्यक तत्त्वों की आहुति आपूर्ति अपने खोखली विचारधारा के साथ दोनों सदनों में बड़ी ही गँभीर मुद्रा में हाव भाव के साथ प्रस्तुत करते हैं ।अन्यथा तो जो सरकार अपने दल बल के साथ सख्त कायदे बनाने में सक्षम है क्या दहेज जैसे इस वृक्ष को उखाड़ फैंकने के लिए कोई ठोस कानून नहीं बना सकती बना तो सकती है पर सारा दोष सरकार पर ही तो नहीं मंढा जा सकता हम सब भी तो इसके लिए जिम्मेदार हैं । देश के विकास में और दहेज जैसी अन्य कुरूतियों को देश से समूल उखाड़ फैंकने में, अपना भी तो नैतिक कर्तव्य बनता है । मेरे से पहले न जाने कितनों ने इस वृक्ष की जड़ें हिलाने का प्रयास किया होगा किन्तु यह वृक्ष आज भी उतनी ही अडिगता से खड़ा है जैसे उन्हें हरपल चिढ़ाता रहता है लो बिगाड़ लो मेरा क्या बिगाड़ सकते हो । इस बात को मैं भी समझता हूँ कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता किन्तु एक कहावत यह भी है कि बून्द बून्द से घड़ा भरता है । किंतु मेरा यह मानना है कि घड़ा ही नहीं बूँद से जोहड़ ,नदी तालाब और यहाँ तक कि सागर भी भर कर हिलौरे मारने लगता है । साहिर लुधियानवी जी की कुछ पंक्तिया जो काफ़ी है यह बताने के लिए की हम क्या कर सकते हैं हमारी क्षमता क्या है किन्तु इन सभी के बावजूद भी हमें हाथ तो बढ़ाना ही होगा
साथी हाथ बढ़ाना, साथी हाथ बढ़ाना
एक से एक मिले तो कतरा बन जाता है दरिया
एक से एक मिले तो ज़र्रा बन जाता है सेहरा
एक से एक मिले तो राई बन सकता है पर्वत
एक से एक मिले तो इन्सान बस में कर ले क़िस्मत,
साथी हाथ बढ़ाना
इस दहेज रूपी वृक्ष को जड़ से उखाड़ फैंकने के लिए हमें किसी औजार , मशीन या यंत्र की आवश्यकता नहीं ,आवश्यकता है तो इसकी की हम अपने देश , समाज , घर ,परिवार के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को समझें । उनका निर्वहन अपनी ईमानदारी से करें, झूठी प्रतिष्ठा और मान मर्यादा के नाम पर किसी की खुशहाल बगिया में चिंगारी जला कर घी तेल का होम न करें ।
आओ हम इस वाक्य की कदर करते हुए ये प्रण लें कि हम आज से ही अभी से ही ये प्रण लेते हैं कि
“न दहेज लेंगे और न ही दहेज देंगे ”
देखना
ये दहेज का वृक्ष धीरे धीरे अपने आप शर्मिंदा होकर पातालमुखी हो जाएगा ।
पर हे मेरे परमेश्वर न जाने वो दिन कब आएगा
जब किसी बिटिया को ससुराल में दहेज को लेकर ताने ना सुनने पड़ें किसी माँ बाप को अपना सर्वस्व गिरवी रख कर ख़ुद को दर दर की ठोकरें न खाना पड़े ,किसी भाई को बाल मजदूरी न करनी पड़े ,और सबसे बड़ी बात ईश्वर ने हमें हमारे पुण्यों के बदले तोहफ़े में हमें ये जो मनुष्य शरीर दिया है जीव और जीवन दिया है वह असमय ही भगवान को प्यारा न हो । इस जीवन की खूबसूरती उसके लिए खोपनाक व दर्दनाक न बन जाए । इसके लिए इतना तो हम कर ही सकते हैं कि सभी खुश रहें ,स्वस्थ रहें मस्त रहें ।
पर मैं इस बात को भी भली प्रकार से समझता हूँ कि दहेज के लालची की आँखों पर लालच की पट्टी और बुद्धि पर ताला पड़ा होता है जिसकी चाबी उसी वृक्ष की सबसे ऊँची शाखा पर फूल बनकर लटकी हुई है
वह बेपरवाह और लापरवाह होकर मात्र अपने स्वार्थ की खातिर लोगों के गले पे गला काटे जाता है ।
उसे औरों की खुशी और खुशहाली से कोई सरोकार नहीं जिनके लिए एक ही बात कही जा सकती है
जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई’ ।।
भवानी सिंह” भूधर”
बड़नगर, जयपुर
दिनाँक:-31/05/2024