एक विडम्बना
शरद पूर्णिमा के
चाँद ने
इठला कर
कहा :
” बन रही
हर घर खीर ”
मैंने कहा :
” उस झोपड़ी में
भी देख
चाँद ,
सौ रहे
भूखे लोग
सहते पीर”
शरद पूर्णिमा के
चाँद ने
इठला कर
कहा :
” बन रही
हर घर खीर ”
मैंने कहा :
” उस झोपड़ी में
भी देख
चाँद ,
सौ रहे
भूखे लोग
सहते पीर”