एक रात का मुसाफ़िर
एक रात का मुसाफ़िर यूँ आकर चला गया
वो आया और दिल की लगाकर चला गया
एक रात का मुसाफ़िर…………
पहली नजर में ही उनको चाहने लगे थे हम
खयालों में देखकर भी मुस्कुराने लगे थे हम
कोई ख्वाब सा वो जैसे दिखाकर चला गया
एक रात का मुसाफ़िर…………
दिल था हमारा वो भी अब हमारा नहीं रहा
जो कुछ हमारा था वो अब हमारा नहीं रहा
एक आग सी वो दिल में लगाकर चला गया
एक रात का मुसाफ़िर………….
वो कौन था ना तो खबर ली ना पता लिया
‘विनोद’एक रहगुजर पर भरोसा कर लिया
जाने कब वो कैसे दिल चुराकर चला गया
एक रात का मुसाफ़िर…………..
वो आया और दिल की………….
स्वरचित
( विनोद चौहान )