एक मुट्ठी राख
दर-दर की धूल न फांक
रे मूरख
पग-पग की धूल न फांक…
(१)
किसे मंदिर-मस्जिद में ढूंढे
किसे पंडित-मुल्ला से पूछे
ज़रा मन के भीतर झांक
रे मूरख
जरा दिल के अंदर झांक….
(२)
काहे बना फिरता हरजायी
तेरे जीवन भर की कमाई
केवल एक मुट्ठी राख
रे मूरख
केवल एक मुट्ठी ख़ाक…
(३)
युग-युग से समझावत हारा
अब क्या करे कबीरा बेचारा
कोई न सुने बात
रे मुरख
कोई न समझे बात…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
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