एक मुक्तक
एक- मुक्तक
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गिरे हैं गर्त में फिर भी ऊँचाई ढूंढ लेंगे हम
हलाहल पी लिया लेकिन सुधा भी ढूंढ लेंगे हम
दया के नाम पर जीयें कभी ये हो नहीं सकता
अभी बाजू सलामत हैं कि रोटी ढूंढ लेंगे हम
– आकाश महेशपुरी
एक- मुक्तक
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गिरे हैं गर्त में फिर भी ऊँचाई ढूंढ लेंगे हम
हलाहल पी लिया लेकिन सुधा भी ढूंढ लेंगे हम
दया के नाम पर जीयें कभी ये हो नहीं सकता
अभी बाजू सलामत हैं कि रोटी ढूंढ लेंगे हम
– आकाश महेशपुरी