एक मुक्तक माँ के नाम
मेरी हर ख़्वाहिशों को माँ स्वीकार करती है।।
कभी जो देर से लौटूँ खड़ी इंतेज़ार करती है।।
तेरे इस प्यार का माँ क़र्ज़ मैं कैसे अदा करूँगी,
मेरी ग़लतियों पर माँ बेपनाह प्यार करती है।।
@शिल्पी सिंह
मेरी हर ख़्वाहिशों को माँ स्वीकार करती है।।
कभी जो देर से लौटूँ खड़ी इंतेज़ार करती है।।
तेरे इस प्यार का माँ क़र्ज़ मैं कैसे अदा करूँगी,
मेरी ग़लतियों पर माँ बेपनाह प्यार करती है।।
@शिल्पी सिंह