एक मुक्तक इंसानियत को बांटने वालों के लिए
बन ना सको इंसान तो हैवान मत होना।
लाखों कारवां में भी अपनी पहचान मत खोना।
क्यों लड़ते हो तुम आख़िर मंदिर ,मस्जिद के ख़ातिर,
मज़हब कोई भी हो पर कभी ईमान मत खोना।।
@शिल्पी सिंह
बन ना सको इंसान तो हैवान मत होना।
लाखों कारवां में भी अपनी पहचान मत खोना।
क्यों लड़ते हो तुम आख़िर मंदिर ,मस्जिद के ख़ातिर,
मज़हब कोई भी हो पर कभी ईमान मत खोना।।
@शिल्पी सिंह