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30 Jan 2017 · 4 min read

एक महान सती थी “पद्मिनी”

एक सती जिसने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया उसकी मृत्यु के सैकड़ों वर्ष बाद उसके विषय में अनर्गल बात करना उसकी अस्मिता को तार-तार करना कहां तक उचित है | ये समय वास्तव में संस्कृति के ह्रास का समय है कुछ मुर्ख इतिहास को झूठलाने का प्रयत्न करने में लगे हुए है अब देखिये एक सर फिरे का कहना है अलाउद्दीन और सती पद्मिनी में प्रेम सम्बन्ध थे जिनका कोई भी प्रमाण इतिहास की किसी पुस्तक में नही मिलता| लेकिन इस विषय पर अब तक हमारे सेंसर बोर्ड का कोई भी पक्ष नही रखा गया है वास्तव में ये सोचनीय है |रानी पद्मिनी का इतिहास में कुछ इस प्रकार वर्णन आता है की “पद्मिनी अद्भुत सौन्दर्य की साम्राज्ञी थी और उसका विवाह राणा रतनसिंह से हुआ था एक बार राणा रतन सिंह ने अपने दरबार से एक संगीतज्ञ को उसके अनैतिक व्यवहार के कारण अपमानित कर राजसभा से निकाल दिया | वो संगीतज्ञ अलाउद्दीन खिलजी के पास गया और उसने पद्मिनी के रूप सौन्दर्य का कामुक वर्णन किया | जिसे सुनकर अलाउद्दीन खिलजी प्रभावित हुआ और उसने रानी पद्मिनी को प्राप्त करने की ठान ली | इस उद्देश्य से वो राणा रतन सिंह के यहाँ अतिथि बन कर गया राणा रतन सिंह ने उसका सत्कार किया लेकिन अलाउद्दीन ने जब रतनसिंह की महारानी पद्मिनी से मिलने की इच्छा प्रकट की तो रत्न सिंह ने साफ़ मना कर दिया क्योंकि ये उनके वंश परम्परा के अनुकूल नही था | लेकिन उस धूर्त ने जब युद्ध करने की बात कही तो अपने राज्य और अपनी सेना की रक्षा के लिए रतनसिंह ने पद्मिनी को सीधा न दिखाते हुए उसके प्रतिबिंब को दिखाने के लिए राज़ी हो गया जब ये बात पद्मिनी को मालूम पड़ी तो पद्मिनी बहूत नाराज़ हुई लेकिन जब रतनसिंह ने इस बात को मानने का कारण देश और सेना की रक्षा बताया तो उसने उनका आगृह मान लिया | 100 महावीर योद्धाओं और अन्य कई दास दासियों ओरपने पति राणा रत्न सिंह के सामने पद्मिनी ने अपना प्रतिबिम्ब एक दर्पण में अलाउद्दीन खिलजी को दिखाया जिसे देख कर उस दुष्ट के मन में उसे प्राप्त करने की इच्छा और प्रबल हो गयी लेकिन ये अलाउद्दीन खिलजी के लिए भी इतना सम्भव नही था |रतन सिंह ने अलाउद्दीन के नापाक इरादों को भांप लिया था | उसने अलाउद्दीन के साथ भीषण युद्ध किया राणा रतन सिंह की आक्रमण नीति इतनी सुदृण थी की अल्लौद्दीन छ: महीने तक किले के बाहर ही खड़ा रहा लेकिन किले को भेद नही सका अंत में जब किले के अंदर पानी और भोजन की सामग्री ख़त्म होने लगी तो मजबूरन किले के दरवाजे खोलने पडे राजपूत सेना ने केसरिया बाना पहनकर युद्ध किया लेकिनअलाउद्दीन खिलजी ने रतन सिंह को बंदी बना लिया और चित्तौड़गढ़ संदेसा भेजा की यदि मुझे रानी पद्मिनी दे दी जाए तो में रतनसिंह को जीवित छोड़ दूंगा जब पद्मिनी को ये पता चला तो उन्होने एक योजना बनाकर अलाउद्दीन खिलजी के इस सन्देश के प्रतिउत्तर स्वरुप स्वीकृति दे दी लेकिन साथ ये भी कह भिजवाया की उनके साथ उनकी प्रमुख दासियों का एक जत्था भी आएगा अलाउद्दीन इसके लिए तैयार हो गया | पद्मिनी की योजना ये थी की उनके साथ दासियों के भेस में चित्तौड़गढ़ के सूरमा और श्रेष्ठ सैनिक जायेंगे ऐसा ही हुआ जैसी ही अल्लुद्दीन के शिविर में डोलियाँ पहुंची उसमे बैठे सैनिकों ने अल्लौद्दीन खिलजी की सेना पर धावा बोल दिया उसकी सेना को बड़ी मात्र में क्षति हुई और राणा रतनसिंह को छुड़ा लिया गया |
इसका बदला लेने के लिए अलाउद्दीन ने पुन: आकरमण किया |जिसमे राजपूत योद्धाओं में भीषण युद्ध किया और देश की रक्षा के लिए अपने प्राण आहूत कर दिए उधर जब रानी पद्मिनी को मालुम पढ़ा की राजपूत योद्धाओं के साथ राणा रतन सिंह भी वीरगति को प्राप्त हुए है तो उन्होंने अन्य राजपूत रानियों के साथ एक अग्नि कुंद में प्रवेश कर जोहर (आत्म हत्या ) कर अपनी अस्मिता की रक्षा हेतु प्राण दे दिए लेकिन जीते जी अपनी अस्मिता पर अल्लौद्दीन का साया तक भी नही पडने दिया |”
ये इतिहास में उद्दृत है लेकिन आज के तथा कथित लोग अपने जरा से लाभ के लिए इस महान ऐतिहासिक घटना को मनमाना रूप देने पर आमादा है |इसके लिए सरकार को और हमारे सेंसर बोर्ड को उचित कदम उठाने चाहिए और सिनेमा क्षेत्र से जुडे लोगों को जो भी ऐतिहासिक फिल्मी बनाना चाहते है उनके लिए ये अनिवार्य कर देना चाहिए की वो इतिहास से जुडे उस व्यक्ति विशेष के बारे में विश्वसनीय दस्तावेजों का अध्ययन करे और फिर उन्हे लोगों के सामने प्रस्तुत करें क्यौंकी इतिहास से जुडे किसी भी घटना या व्यक्ति के विषय में मन माना कहना या गड़ना उचित नही है इसका समाज और राष्ट्र पर नकारात्मक प्रभाव जाता है और देश की ख्याति धूमिल होती है |

Language: Hindi
Tag: लेख
3 Likes · 1 Comment · 794 Views
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