एक मतला दो शेर
हुआ कैसा मिरे दिल पे निगाहों का असर है
जिधर है वो सनम कातिल नज़र मेरी उधर है
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जहां पर हैं कदम तेरे ऐ मेरी दिलरुबा तू सुन
मेरी मंजिल उसी पर जो तुम्हारी रहगुजर है
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ये उर्दू है जबां शीरी —–;; -तो हिंदी है निराली
ग़ज़ल मर्जी कहो जिसमें सभी करती असर है
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