एक मछुआरे का संकल्प
जीवन में सपने बुनने का अधिकार सबको होता है। क्या कोई आदमी गर पैसे, ओहदे और रुतबे से दुनिया की नजरों में छोटा है तो क्या वह खुद के लिए बड़े बड़े और ऊंचे ख्वाब नहीं देख सकता। देख सकता है, क्यों नहीं देख सकता। मैं अभी एक कम उम्र का मछुआरा हूं। रोज रात को चांद सा कभी आसमान पर चमकूंगा और अपने जीवन के अंधेरे मिटाऊंगा, यह ख्वाब रेशम के धागों से बुनता हूं और थकहारकर सो जाता हूं।
आज सुबह तड़के उठा तो दिल में यह चाहत थी कि मेरे जाल में आज ढेर सारी मछलियां फंस जायें और उन्हें बेचकर मेरी अच्छी कमाई हो जाये। सुबह से लेकर शाम हो गई। एक भी मछली हाथ नहीं आई। शाम हो चली। सूरज डूबने पर आ गया। थकहारकर एक आखिरी कोशिश करी। पूरी ताकत से जाल आसमान की तरह उछाला। हिम्मत तब जवाब दे गई जब आखिरी कोशिश में भी मछली जाल में न फंसी। फंसा तो डूबता सूरज। अब इसका क्या करूं मैं। इसकी विशालता मेरे किस काम की। इसे बेचकर मैं अपना पेट तो नहीं भर सकता। चमकता हुआ गोल सा दिखता है एक तवे से उतरती गर्म रोटी की तरह पर इसे खा भी नहीं सकता। जा सूरज जा तू डूब जा सागर के गहरे तल में। मैं करता हूं तुझसे किनारा। अपने घर जाता हूं आज की सांझ। आज रात के अंधेरे में चांद तुम भी मेरे दिल की छत पर मत उतरना। आज नाराज हूं मैं तुम सबसे। आज मैं निराश हूं। थक गया हूं। आज मैं कोई सपना नहीं देखूंगा। बस चैन की झपकी लूंगा। सुबह एक संकल्प लेकर उठूंगा कि एक बड़ा और रईस नहीं हे भगवान! तू मुझे एक साधारण और महान आदमी बनने में मेरी मदद कर।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001