एक मंज़र कशी ओस के संग 💦💦
एक मंज़र कशी ,
दिनांक _ 07/06/2024,,
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एक मंज़र कशी ,
” कुछ खुली आंखों से ,कुछ शब्दों के गहनों से ”
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लुढ़कते हुए गालों पर अश्क़ की मानिंद गिरती हुई ओस की बूंदें पत्तों पर ठहरी हुई #ओस से कह रहीं थी _ “पगली ! मत इंतज़ार कर , वो नहीं आएगा ।”
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” वो कौन ? ” पूछ बैठी हवा , कुछ लजाकर , कुछ शरमाकर ,,, अचानक हँसते हुए बोली ,, ” ” ओह ! वो , वो तो ज़रूर आएगा ,और कानों में गुनगुनाएगा , प्यार जताएगा , बाहें गले में डाल कर इतरायेगा ,, मगर वो ज़रूर आएगा ।”
एक ठहाके के साथ उड़ चली पश्चिम दिशा की ओर ,,, इतना कहते हुए ,, “आती हूं वापस ,देख आऊं , ज़रा उनको , जिसके दीदार के लिए , तू परेशान है , आखिर वो मसरूफ़ कहां है । ” और तेज़ी से रवाना हो गई ।
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बेचारी भीगी भीगी आंखों से इंतज़ार में डूबी हुई ओस ,,, बिखरने लगी ,, बिखरते बिखरते उसने तो सभी दरखतों को रुला दिया ,,,
मैं देख रही थी हौले हौले ,चलते चलते , चप्पल दूर उतार आई थी ,, क्या देखा ,,” इधर तो चारों तरफ़ ही बरसात सी उतरती हुई , पूरे बाग को ही भिगो रही थी , जैसे बरसों की प्यास मिटा रही हो । ” मेरे पैर भी भीग चुके थे , और सुकून सर के बालों तक पहुंच चुका था , दिल कहता था ,ये मंज़र यहीं रुक जाए ,,
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भीनी भीनी गुलाबों की खुशबू , ठहरी हुई रात रानी की खुशबू , कहीं बेला , चमेली , गेंदा सब महक उठे ,एक हल्की सी चमक को पाकर,, खुशी से नाच उठा बाग का एक एक पत्ता ,और वो आ गया, जिसका इंतज़ार था ,, सिमट गई बाहों में अपने प्रियतम की , लिपट गई , वो कौन , वही आफ़ताब,, जिसके आते ही ओस परदा कर गई ,, शर्मीली सी शर्माती हुई समा गई मेहबूब के सीने में ।
हसीन मंजर कुशाई “नील” ने दिखाई ।
✍️नील रूहानी ( नीलोफर खान)
प्रथम