एक भ्रम जाल है
एक भ्रम जाल है
हर भीड़ में चलता हर आदमी
जैसे साथ नहीं होता
जो साथ दिखते हैं
जेहन से होते हैं कहीं और
बस एक भ्रम जाल है
साथ हैं वो मेरे
यह कुछ नहीं
बस एक ख़ामख़्याल है
अतुल “कृष्ण”
एक भ्रम जाल है
हर भीड़ में चलता हर आदमी
जैसे साथ नहीं होता
जो साथ दिखते हैं
जेहन से होते हैं कहीं और
बस एक भ्रम जाल है
साथ हैं वो मेरे
यह कुछ नहीं
बस एक ख़ामख़्याल है
अतुल “कृष्ण”