‘एक भूल’
‘एक भूल’
बात तब की है जब मैं कक्षा पाँच में थी।उन दिनों कक्षा पाँच की भी बोर्ड परीक्षा होती थी । मैं गाँव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ती थी।
हमारा सेंटर रायवाला के किसी स्कूल में था । हम सब विद्यार्थी प्रधानाचार्य के साथ वहीं पास ही एक कमरे में ठहरे थे।दोपहर भोजन का वक्त था, सब खाना खाने जमीन पर पंक्ति में बैठ गये ।दूसरे विद्यालय के कुछ विद्यार्थी भोजन बाँट रहे थे।मेरी प्लेट में खाना खत्म हो गया था। उस समय पत्ते की प्लेट होती थी। मेरा पेट भर चुका था।खाली पत्ता देखकर एक बालिका मेरे पास आई और खाना देने लगी । मैंंने मना किया पर वो जिद करने लगी कि लेलो थोडा़ मैंने फिर मना किया पर तब तक वो खाना डाल चुकी थी।अनायास ही मैं उस पर बरस पडी़ । मैं जोर- जोर से बोल रही थी कि जब मैं नहीं लेना चाहती हूँ तो क्यों जबरदस्ती कर रही है। मैं तुम्हारी मरजी से क्यों खाऊँ । अब खा तू इसे । उसने माफी मांगी और पत्तल उठाकर ले गई और मेरे हाथ धुलवाने के लिए पानी लेकर आई। मेरा गुस्सा फिर भी कम नहीं हुआ था।
परीक्षाएँ समाप्त हो गई और हम अपने-अपने घर वापस आ गए।
जब भी कभी खाना खाने बैठती मुझे वो घटना याद आने लगती।
धीरे-धीरे मुझे अपनी भूल का एहसास होने लगा । मैंने उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था।काश मैं उससे अपने अभद्रतापूर्ण व्यवहार के लिए क्षमा मांग पाती।उस बात को मैं आज भी भूल नहीं पाती।
श्रीमती गोदाम्बरी नेगी