एक बनाया गया रिश्ता “पति पत्नी”
पति-पत्नी
एक बनाया गया रिश्ता…
पहले कभी एक दूसरे को
देखा भी नहीं था…
अब सारी जिंदगी एक दूसरे के साथ।
पहले अपरिचित,
फिर धीरे-धीरे परिचय।
धीरे-धीरे होने वाला स्पर्श
फिर
नोकझोंक….
झगड़े…
बोलचाल बंद।।
कभी जिद,
कभी अहम का भाव…..
फिर धीरे-धीरे बनती जाती.!
प्रेम पुष्पों की माला
फिर
एकजीवता,
तृप्तता।
वैवाहिक जीवन
परिपक्व होने में समय लगता है।
धीरे-धीरे जीवन में
स्वाद और मिठास आती है…
ठीक वैसे ही
जैसे
अचार
पुराना होता जाता है,
उसका स्वाद बढ़ता जाता है…
पति- पत्नी
एक दूसरे को अच्छी प्रकार
जानने समझने लगते हैं ।
वृक्ष बढ़ता जाता है,
बेलें फूटती जाती है।
फूलआते हैं, फल आते हैं,*
रिश्ता और मजबूत होता जाता है।
धीरे-धीरे
बिना एक दूसरे के
अच्छा ही नहीं लगता।।
उम्र बढ़ती जाती है,
दोनों एक दूसरे पर अधिक आश्रित होते जाते हैं।
एक दूसरे के बगैर खालीपन
महसूस होने लगता है।
फिर धीरे-धीरे
मन में भय का निर्माण होने लगता है।
“ये चली गईं तो मैं कैसे जिऊँगा”…??
“ये चले गए तो मैं कैसे जीऊँगी”…??
अपने मन में घुमड़ते इन सवालों के बीच
जैसे, खुद का स्वतंत्र अस्तित्व दोनों भूल जाते हैं।
कैसाअनोखा रिश्ता..
कौन कहाँ का… और एक बनाया गया रिश्ता।
“पति-पत्नी”