एक फूल
जब मैं गया फूल तोड़ने
पेड़ मुझसे बातें करने लगी
पुछने लगी क्यों तोड़ रहे
तुम मेरे डाल से फूल?
क्या अच्छी नहीं लगती
मेरे लाल पीले सफेद फूल!
मैं चौंककर पीछे हटा
देखा तो कोई चेहरा न दिखा
केवल मैंने आवाज़ सुना
उसने फिर से वही सवाल दोहराई
डाल से क्यों तोड़ रहे फूल?
मैने काँपते होंठ से कहा
पूजा में अर्पण के लिए!
सुन यह जवाब मेरा
किलकारी मार वो हँसी
पूछने लगी दिया किसने
तुम्हें फूल अर्पण का सीख?
जिसे भेंट करने ले जा रहे हो
मेरे डाल में लगे खूबसूरत फूल,
उसने ही प्रकृति में रचा है मुझे
बिन मर्ज़ी उसके खिलते नहीं
कभी मुझमें एक भी फूल।
सोचो ज़रा तुम इस नाते,
हुआ मैं उनका कौन?
शायद संतान!
सच कहाँ तुमने
मैं भी हूं उनका संतान
तो सोचो कैसे खुश होंगे
तुम्हारे वो अपने भगवान
सौप जिन्हें रहे तुम
हर उनके ही संतान के प्राण!
अनिल “आदर्श “