एक प्रेमिका की वेदना
तेरी मन मोहनी मूरत मन में बस गई,
तेरी प्रतीक्षा करते अंखियां थक गई।
ग्रीष्म ऋतु जाकर,शरद ऋतु भी आ गई,
न जाने कब आओगे अब तो हद हो गई।
आ जाओ मेरे सनम,रात बहुत हो गई,
जागते जागते सारी रात,यूंही कट गई।
आता नहीं चैन,अब तो राते ठंडी हो गई
बिन घटा के ये बदली अब तो बरस गई।
आ जाओ,अब तो सारी सीमाएं पार हो गई,
बिन देखे तुमको,ये अंखियां अब तो तरस गई।
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम