एक प्रसंग रामायण से ?
रामानंद सागर का रामायण जिसने घर घर टीवी पहुँचाया
उसमें एक प्रसंग था ईक एपिसोड में
रावण गुस्से में अशोकवाटिका में
सीता के सामने आता है
और…….ठेठ भाषा……में…..कहें….. तो
धमकाता है
वही……….. सीते ए कर दूंगा वो कर दूंगा
फलाना ढमकाना
माता सीता अपनी हथेली में सफेद पंख पकड़े हुये जो संभवतः जटायु का था…ठीक से याद नहीं
क्रोध में जैसे प्रज्ज्वलित अग्नि का स्वर
कहती हैं
रावण मुझे तो दूर अगर तुमने इस पंख को हाँथ लगाया
तो जलकर भष्म हो जाओगे
रावण हाँथ पैर पटकता लौट जाता है
ये तो हो गई टीवी सीरियल की बात रामानंद सागर कृत
अब बात करते हैं रावण की
तो ज्ञानी बलशाली सोने की लंका शिवभक्त
पर
मंदोदरी जैसी पतिव्रता स्त्री का पति होने के बावजूद
अधर्मी…बात बात पर देवताओं तक को ललकारने वाला…अपने वैभव और ताकत के मद में चूर
दूसरे की पत्नी पर सिर्फ बूरी नजर नहीं
हरण कर लेने वाला
भेष किसका बनाया……ब्राह्मण याचक का…..
इतना शक्तिशाली और ज्ञानी होने के बावजूद
रावण को एक ब्राह्मण याचक का रुप धारण करना पड़ा जो वो नहीं था क्योंकि
सीधी भाषा में अमीर अमीर होता है और गरीब गरीब
रावण एक घमंडी पापी अधर्मी राक्षस था फिर भी वो रुप धारण करना पड़ा उसे
जिसे सामने वाला भिक्षुक होते हुये भी ज्ञानी मानने के लिये तैयार हो आदर देने के लिये तैयार हो
पर माँ सीता लक्ष्मी का अवतार सर्वशक्तिमान धरती पर भी राजा की बेटी
फिर भी पृथ्वी पर एक सामान्य इंसान का जीवन जीती हुई
विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी
ईश्वरीय शक्ति से खुद को कोशों दूर रख
रावण की नगरी में रावण को प्रास्त करती हुई
एक असाधारण स्त्री।
झुठ से वसीभूत
तुम कर दो चिथड़ो में
पर सत्य उसका है जिवीत
जब तक हृदय में जीवन है
माँ दूर्गा का दिन है आज
श्रीराम के जयघोष को लिखता
आज भी
साश्वत सीता का चरित्र चित्रण है।
©दामिनी नारायण सिंह