एक पथिक का दुख और माँ से पुकार
देख के धरती_माँ क्या आज तुझे
दिल दहल सा नहीं जाता है
कल जो तुझे काटो से बचाता था
आज खुद काटो मे गिर जाता है
हर कदम पर जहाँ सुकू था
आज वही गम की बेला है
जिस रास्ते को यू ही गुज़ार देते थे
आज उसी मे खड़ा पथिक अकेला है
हे माता क्या तुझे नहीं पता
तेरा लाल जी रहा किस हालत मे
पसीने के पानी को आज वह
घूट-घूट कर पी रहा है किस हालत मे
जिसको पहुंचाया सबको उनकी मंजिलों मे
आज वही पथिक रास्ते मे भटक रहा है
हे माँ क्या तुझे नहीं पता
तेरे लाल हज़ार है
आज जरुरत उनको जिनकी है
उनके साथ सिर्फ तेरा प्यार
पंहुचा दे माँ उनको उनकी मंजिल मे
भटक रहा है पथिक जिसको पाने को
आस लगी है आज उसे माँ
बस अपने घर को जाने को