एक पत्र- “बेनाम रिश्ते के नाम”
जब से होश संभाला तभी से तुझसे ठीक से पहचान हुई और समझ में आने लगा कि तेरा आशीष तो मुझ पर जन्म जन्मांतर से ही है।
मेरे कंठ में, मेरी जिव्हा पर, मेरे स्वर में, मेरे शब्दों में, मेरे सुरों में, मेरी धुनों में, मेरे राग में, इक-इक अक्षर पर, तेरे आशीष की अमिट व अद्भुत छाप है।
तू तो मुझे हर क्षण, हर पल कुछ न कुछ देती रहती है। तेरे दिए गये उपहार मुझे प्रतिपल यह आभास कराते हैं कि तू मेरी रग-रग में एक-एक शब्दोच्चारण में समाहित है। यह अलौकिक ईश्वरीय अनुभूति मुझे आनंदित किए रहती है। तेरे- मेर इस बेनाम रिश्ते के मध्य तो हवा के लिए भी स्थान नहीं।
तू मेरा हृदय है, मेरा प्राण है, मेरी सखा है, मेरी माँ है, और है मेरी पथप्रदर्शक। तू मेरी देवी है, मेरा भगवान है तू माँ शारदे। तेरे संग मैं भावों के उन असंख्य प्यार-भरे रिश्तों की अदृश्य मधुर डोर से आबद्ध हूँ जो स्पर्श, दर्श व नाम की संज्ञाओं से परे है।
तुझे एक नाम में कैसे मैं बांधूँ और क्यों बांधूँ ??
मेरी लेखनी, मेरी कलम, जो तूने मेरे हाथ में थमा दी है न उसे मैं अपनी अंतिम श्वास तक थामे रहना चाहती हूँ शारदे। मुझे आशीर्वाद दे कि तेरे द्वारा हाथों में थमाई इस कलम को कभी भी असत् न छुए। यह कभी किसी को पीड़ा न दे, कभी चोट-चुभन न दे। सतत् सत्मार्ग पर सत्सृजन करती रहे मेरी लेखनी। तेरे आशीष रूपी यह लेखनी तेरे स्नेह की मसि से सदा समाज को उत्तम कृतियाँ दे ऐसा वरदहस्त मेरे शीश पर सदैव रखना, मेरी स्नेहिल परम प्रिय देवी शारदे।
सदैव इसी अनुकम्पा की भिक्षुका?
मैं तेरी अनन्य भक्त तनया
रंजना