एक पत्रकार और महान स्वतंत्रता सेनानी जिनका नाम आज कहीं गुम हो गया
रानी लक्ष्मी बाई,लाल बहादुर शास्त्री,जवाहरलाल नेहरु, बाल गंगाधर तिलक,चंद्रशेखर आजाद,भगत सिंह आदि
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम तो आपने सुने ही होंगे पर कुछ स्वंत्रता सेनानी ऐसे भी हैं जो इतिहास के पन्नों मे कहीं गुम हो गए हैं उन्ही में से एक हैं बारीन्द्र कुमार घोष
जो 5 जनवरी 1880 मे लन्दन के पास क्रोयदन (croydon) नामक कसबे में जन्मे थे , बंगाल में क्रांतिकारी विचारधारा फैलाने का श्रेय इन्हे और भूपेन्द्र नाथ दत्त को ही जाता है , स्वदेशी आंदोलन’ के परिणामस्वरूप इन्होंने क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करने के लिए 1906 में बंगाली साप्ताहिक ‘युगान्तर’ का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इन्होंने भूपेन्द्रनाथ दत्त के सहयोग से 1907 में कलकत्ता में ‘अनुशीलन समिति’ का गठन किया गया, जिसका प्रमुख उद्देश्य था- “खून के बदले खून” साथ ही साथ इन्होंने 1907 में क्रांतिकारी आतंकवाद की गतिविधियों का संयोजन करने के लिए ‘मणिकतल्ला पार्टी’ का गठन भी किया था। 1908 में इन्हें गिरफ़्तार कर मृत्यु दण्ड की सजा सुनाई गई, किन्तु बाद में इसे आजीवन कारावास में बदल दिया गया। अण्डमान जेल में दस वर्ष व्यतीत करने के बाद इन्होंने अपना शेष समय पत्रकारिता में लगाया। इन्होंने अंग्रेजी साप्ताहिक “The Dawn of India” का प्रकाशन किया एवं ‘The statesman’ समाचार पत्र से भी ये जुड़े रहें। इन्होंने बांग्ला दैनिक समाचार पत्र ‘दैनिक बसुमती’ का भी संपादन किया।
साथ ही इन्होंने क्रांति से सम्बंधित ‘भवानी मंदिर’ नामक पुस्तक लिखी ,इनकी लिखी गई दूसरी पुस्तक ‘वर्तमान रणनीति’ बंगाल के क्रांतिकारियों की पाठ्यपुस्तक बन गई
‘द्वीपांतर बंशी’, ‘पाथेर इंगित’, ‘अमर आत्मकथा’, ‘अग्नियुग’, ‘ऋषि राजनारायण’, ‘श्री अरविन्द’ इनकी कई अन्य रचनाएँ हैं ।
बारीन दा पर अंग्रेजों द्वारा कठोर अत्याचार किए गए लेकिन अंग्रेज सरकार उनके मुँह से एक भी शब्द नही निकला पाई उनके मुँह से हमेशा “वंदेमातरम्” शब्द ही सुनाई देता था और ऐसे ही आजादी के लिए संघर्ष करते करते 18 अप्रैल 1959 को एक महान पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी कई और गुमनाम स्वंत्राता सेनानियों और पत्रकारों की तरह इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए खो गया…
एक लेख उस पत्रकार के लिए जो हमारी आज़ादी के लिए संघर्ष करते करते कहीं खो गया ।
।।उनके जन्म दिवस पर उनको शत शत नमन।।