*कैसे दिल की किताबें मै खोलूँ*
कैसे दिल की किताबें मै खोलूँ
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कैसे दिल की किताबें मै खोलूँ,
मुंह से लफ्ज़ कैसे प्रेम के बोलूँ।
मन की बातें तो कह दी उन से,
उनके मब की बातें कैसे तोलुूँ।
तीखी बोली में वो झट से बोली,
नहीं हो सकती तुम्हारी जोरू।
बंधन में बंधी हूँ किसी दूजे के,
किसी और के है दो गोलू मोलू।
प्यार जहां मे बहता सा दरिया,
रिश्तों के बंधन मे कैसे मै बांधूँ।
मुश्किल बहुत सच को सहना,
अश्क़ विरह के कैसे मै रोकूँ।
बहुत खुश हूँ मै उनकी खुशी में,
ताली खुश होकर कैसे मै ठोकूँ।
हृदय मे उन के कड़वाहट भरी,
मीठी सी मिश्री कैसे मै घोलूँ।
रोका बहुत खुद को मनसीरत,
पलभर में उनके प्यार में डोलूँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)