एक नए सूरज का उदय
एक नए सूरज का उदय
शहर के खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी के कार्यालय में पूरी गहमा-गहमी थी| आज खंड की ग्राम पंचायतों को ड्रा द्वारा आरक्षित व अनारक्षित घोषित करना था| यह सुनिश्चित होना था कि किस गांव का सरपंच/पंच का पद महिला, अनुसूचित जाति की महिला व अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होगा| किस गांव के सरपंच/पंच का पद अनारक्षित होगा|
खंड के सभी प्रभावशाली लोग उपस्थित थे| कार्यालय का पार्किंग स्थल बिना छत की जीप, महंगी लग्जरी गाड़ियों, सकूटर व मोटरसाइकिलों से खचाखच भरा था| उपस्थित लोगों के रौब-दाब का अंदाजा उनके सफेद लिबास, बोल-चाल व हाव-भाव से सहज ही लगाया जा सकता था| सामन्ती प्रवृत्ति अनायास ही उनके व्यवहार से झलक रही थी| ज्यों-ज्यों ड्रा का समय नजदीक आ रहा था| त्यों-त्यों चौधरियों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी| कइयों की बेचैनी का माथे के पसीने ने स्पष्टतया बखान किया|
सबकी उत्सुकता थी, शिघ्रातिशिघ्र अपने गांव की स्थिति जानने की| अपने आप को भावी सरपंच मानने वालों को अनेक आशंकाओं ने घेर रखा था| उन पर एक-एक सैकिंड भारी पड़ रहा था| सबकी बेचैनियों के बीच ड्रा का निर्धारित समय आ गया| एक-एक करके सभी आरक्षित पदों का ड्रा निकाला गया| जिस-जिस गांव का सरपंच का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुआ| उस-उस गांव के सफेदपोश की हालत देखने लायक थी| सफेदपोशों के चेहरों से, ”उनकी आशाओं पर पानी फिरता” आसानी से देखा जा सकता था| इसी खंड में गांव समाधा व समाधी भी हैं| जिनका आज तक सरपंच का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित नहीं हुआ| सभी सफेदपोश चर्चा कर रहे थे कि चौ. नसीब सिंह की पता नहीं क्या सैटिंग है? इनके दोनों गांवों के सरपंच के पद आज तक आरक्षित नहीं हुए| सभी ड्रा हो चुके थे| सिर्फ दो ड्रा बाकी थे| दोनों सरपंच पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने थे| तभी दोनों का भी ड्रा हुआ| गांव समाधा व समाधी दोनों का सरपंच का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित घोषित किया गया|
अपने गांव समाधा का सरपंच का पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित होने की बात सुनकर, चौ. नसीब सिंह के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई| उसे लगा कि सरपंच का पद गया हाथों से| चौधरी साहब पसीने में तर ब तर हो गया| उसके साथ आए नौकर (सीरी/साझी) से उसने पानी मांगा| सीरी भाग कर, गाड़ी से पानी की बोतल लाया| चौधरी साहब एक सांस में गटागट पी गया| चौधरी साहब के एक इशारे पर चालक गाड़ी लाया| चौधरी साहब गाड़ी में बैठा और गाड़ी कार्यालय से यूं निकली जैसे फायर ब्रिगेड की गाड़ी आग बुझाने निकली है|
चौधरी साहब के जाने के बाद कार्यालय में चर्चा का विषय गांव समाधा व समाधी का सरपंच पद ही था| एक कह रहा था कि चौधरी नसीब सिंह के साथ ये क्या बनी? दूसरा कह रहा था कि गांव समाधा की सरपंच तो चौधरी साहब के सीरी की पत्नी बनेगी लेकिन चलेगी चौधरी साहब की ही| तीसरा बोला,”कुछ भी हो परन्तु वह बात नहीं होगी| राज और खाज अपने हाथ से मजेदार होते हैं| चौधरी साहब की सम्पन्नता का कारण सरपंची ही था| खूब खाता और खूब शासन-प्रशासन को भी खिलाता है| सबको टुकड़ा फैंकता है| इसलिए ही आज तक नोट छाप रहा है| तीन प्लान खुद सरपंच रहा| दो प्लान सरपंच का पद महिला के लिए आरक्षित हुआ तो, अपनी पत्नी सरपंच बनवा दी|
उधर चौधरी नसीब सिंह को गांव का साम्राज्य हाथ से निकलता प्रतीत हो रहा था| उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था| वह पगला सा गया था| बस एक ही बात दिल-औ-दिमाग में, गई चौधर, गई सरपंची हाथ से| परिवार सदस्यों ने बड़ा समझाया, परन्तु सब कुछ फिजूल रहा| उसकी पत्नी दोपहर का खाना लेकर आई तो उसने खाना खाने से मना कर दिया| पूरा परिवार चौधरी की हालत देख कर चिंतित हो गया| दोपहर से शाम हुई| सारा परिवार लम्बे-चौड़े आंगन में बैठ गया| चौधरी को समझाने के तमाम प्रयास किए गए| तरह-तरह की बातें चलीं|
चौधरन बोली,”अपने सीरी गोधु की बहू भी पांच पास है| उसको सरपंच बनवा देते हैं| वह भी तो अनुसूचित जाति की ही है|”
चौधरी बोला,”अब पहले वाली बात नहीं कि मर्जी जहाँ अंगूठा लगवा लो| अब ये एक्ट्रोसीटी एक्ट (Sc/st Act) लगवाते देर नहीं लगाते| कुछ भी समझ नहीं आ रहा| क्या किया जाए?”
बातें करते-करते अचानक चौधरी की आंखों में चमक आ गई|
चौधरी ने अपनी पत्नी से कहा,”अपने राजा की बहू से फोन करके राजी-खुशी पूछ|”
चौधरी के मुंह से यह सब सुन कर चौधरन हैरान और परेशान हो गई| सोचने लगी, जब से बड़े बेटे राजकुमार ने (जिसे लाड-प्यार में सब राजा कहते हैं) अंतर्जातीय प्रेम-विवाह किया है| तब से चौधरी के परिवार ने उससे सभी संबंध तोड़ लिए थे| चौधरण ने जब भी राजा व उसकी पत्नी से फोन पर बात की, चौधरी से छुपाकर ही की थी| चौधरी ने पूरे परिवार को हिदायत दे रखी थी कि गैरजात की लड़की से विवाह करने वाले राजा से कोई किसी प्रकार का संपर्क नहीं करेगा| परन्तु चौधरण तो मां थी| मां की ममता के समक्ष चौधरी का तुगलकी फरमान कहाँ टिकने वाला था? ममतावश वह समय-समय पर राजा व उसकी पत्नी से बात कर लेती थी| चौधरण सोच रही थी कि आज सूरज पश्चिम से कैसे निकला| राजा का नाम तक न सुनने वाला चौधरी, आज खुद राजा की बहू से बात करने की कैसे कह रहा है? चौधरण को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ|
चौधरी ने कहा,”राजा की बहू भी तो अनुसूचित जाति की है| कहने वाले ने सही कहा है| खोटा बेटा, खोटा पैसा बखत पर काम आता है|”
चौधरण ने अपने बेटे राजा व उसकी पत्नी से बात की|
चौधरी ने कहा,”बहू-बेटे को देखने का मन है|”
राजा बोला,”माँ हमारे पास आ जाओ, हमारा तो गांव में आना संभव नहीं है| पिता जी घर में घुसने नहीं देंगे|”
चौधरण ने कहा,”बेटा बख्त बलवान है| जो बड़े-बड़े घाव भर देता है| तेरे पिता जी ने तुझे माफ कर दिया|”
राजा बोला,”लेकिन खाप पंचायत ने तो हमें गांव निकाला दे रखा है| जो कहते हैं कि अपनी खाप के गांव की लड़की के साथ शादी क्यों की? यह कैसे संभव होगा?”
चौधरण ने सारा वृतांत चौधरी से कह सुनाया|
चौधरी बोला,”खाप-पंचायत को तो मैं अपने-आप देख लूंगा| कोई कुछ नहीं कहेगा| खाप-पंचायत वाले मेरे लिहाजी-मुल्हाजी हैं| राजा व उसकी पत्नी को बुला ले बाकी मैं अपने-आप देख लूंगा|
चौधरी ने तिकड़मबाजी शुरु कर दी| सबसे पहले चौधरी ने एक पत्रकार की जेब में पैसे डाल कर खबर लगवाई| जिसका शीर्षक था, “गांव समाधा-समाधी में सरपंच पद के लिए, एक भी योग्य उम्मीदवार नहीं है|” ताकि अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों का हौसला टूट जाए, ताकि वे हार से पहले ही हार मान लें| यह खबर चौधरी की रणनीति का ही हिस्सा थी| यह चौधरी की पुत्रवधु की सरपंच पद के लिए दावेदारी के लिए भूमिका थी| लेकिन इससे अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों में सुगबुगाहट शुरु हो गई| रणनीति के तहत राजा व उसकी पत्नी की गांव में वापसी हुई| राजा को अत्यधिक बीमार प्रचारित किया गया| माहौल में भावनात्मकता का रंग दिया गया| चौधरी का पूरा परिवार खुश था| चलो चुनाव के बहाने ही सही, परिवार एक तो हुआ|
लेकिन खाप-पंचायत को चौधरी के बेटे-बहू की घर वापसी नागवार गुजरी| गांव के विख्यात चबूतरे पर खाप-पंचायत बैठी| जिसमें चौधरी को भी तलब किया गया| पंचायतियों ने उससे सवाल-जवाब किए| चौधरी की दिन-रात हाजरी भरने वाले भी पंचायती बने बैठे थे| खाप-पंचायत, चौधरी के बेटे-बहू की घर वापसी को पंचायत के तुगलकी फरमान की अवमानना मान रही थी| चौधरी, बेटे की घर वापसी को बीमारी से जोड़कर, भावनात्मक रंग देकर, सियासत करना चाहता था| लेकिन खाप-पंचायत के सदस्य, सब दलीलें दर किनार करके, चौधरी को दोषी ठहरा रहे थे| तर्क दिए गए कि खाप के ही गांव की लड़की, पड़ौसी गांव में बहू बनकर कैसे रह सकती है| इससे तो भाईचारा खत्म हो जाएगा| समाज का ताना-बाना बिखर जाएगा| बाप-दादाओं की परम्परा टूट जाएगी| छोटे-बड़े का काण-कायदा नहीं कहेगा| सब कुछ भ्रष्ट हो जाएगा| खाप-पंचायत के फैसले की अवहेलना आज इसका बेटा कर रहा है| कल दूसरे का बेटा करेगा| यूं तो समाज-व्यवस्था खत्म हो जाएगी| घोर अनिष्ट हो जाएगा|
चौधरी ने भी अपने रौब-दाब व रसूख को खूब भुनाना चाहा| आखिर पंचायत बेनतिजा उठ गई| कुछ पंचायती, चौधरी के खिलाप हो गए, कुछ पक्ष में हो गए| खाप-पंचायत दो फाड़ हो गई| चौधरी ने नाराज पंचायतियों को मनाने का हर संभव प्रयास किया| तमाम हथकंडे अपनाए| लेकिन बहुत से पंचायतियों को नहीं मना पाया| वे नाराज ही रहे|
उधर अनुसूचित जातियों ने चौधरी की पुत्रवधु की सरपंच पद की दावेदारी का विरोध किया| शासन-प्रशासन ने अनुसूचित जाति के लोगों को बताया कि वर्तमान की कानून-व्यवस्था के मुताबिक़ धर्म बदला जा सकता है, जाति नहीं| अत: प्रशासन ने भी चौधरी की पुत्रवधु का सरपंच पद का चुनाव लड़ना तर्कसंगत बताया|
अनुसूचित जाति के लोगों की पंचायत हुई| जिसमें इस चुनाव को अपनी नाक का सवाल बताया| अनुसूचित जाति के लोगों ने संकल्प लिया कि कोई भी शराब या अन्य प्रकार के लालच में पड़कर, अपने वोट को नहीं बेचेगा| किसी भी प्रकार के दबाव में नहीं आएंगे| एकजुटता कायम रखेंगे|
चुनाव में चौधरी की पुत्रवधु पार्वती व अनुसूचित जाति की सांझी उम्मीदवार सावित्री से कांटे की टक्कर हुई| चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया| समाधा गांव का सरपंच पद का चुनाव जिले भर में नहीं बल्कि पूरे राज्य में चर्चा का विषय बन गया| सोशल-साइट्स पर भी इस चुनाव से संबंधित तरह-तरह की पोस्ट, तरह के स्टेटस डाले गए| अनुसूचित जाति की एकजुटता से चौधरी बेहद परेशान था| चौधरी ने चुनाव जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया| उसने शाम, दाम, दंड, भेद सब कुछ आजमाया| तरह-तरह की अफवाह फैलाई गई| अनुसूचित जाति के लोगों में फूट डालने के तमाम प्रयास किए गए| रूठों को मनाने की कौशिश की| जाने क्या-क्या पापड़ बेले? परन्तु कुछ काम नहीं आया|
रूठे हुए खाप-पंचायत वालों ने व एकजुट अनुसूचित-जाति के लोगों ने एकतरफा मतदान किया| चौधरी ने बूथ कैपचरिंग के असफल प्रयास किए| जो अनुसूचित जाति के जांबाजों की सजगता ने कामयाब नहीं होने दिए|
कड़ी सुरक्षा के बीच उपमंडल प्रशासन के समक्ष परिणाम घोषित किया गया| मतगणना में सांझी उम्मीदवार सावित्री विजयी रही| चौधरी की पुत्रवधु हार गई| इसी के साथ सामन्तवाद का किला चरमरा कर गिर गया| एक नए सूरज का उदय हुआ|
-विनोद सिल्ला©