एक नई शुरुवात
दुनिया भर की तुम फिक्र को छोड़ो
सुन लो अपने दिल की बात ।
ठान लो भाई, मुट्ठी भींच लो,
ढूंढो, तरासो क्या है सौगात ।
मंजिल यू ही एक रात में नही है मिलती,
खुद से लड़ना और खुली आँखों से
बितानी पड़ती है कई रात ।
संघर्ष के दौर में बहुत कुछ खोना पड़ता है
कुछ पाने की चाहत में ।
छिन जाया करती है कई दफा आत्मसम्मान और
काबू में रखने पड़ते अपने अंदर के जज्बात ।
सफलता यू ही नही मिला करती सबको
जिंदगी की ताप, दाब सहन करना पड़ता है ।
हीरे की तरह चमकना हर कोई चाहता है ।
पर अपने पसीने को बहाकर तो करो कोई “एक नई शुरुवात”
गोविन्द उईके