एक दोहा …. लोभ मोह में फँस यहाँ, होते पापी कृत्य. बाह्य जगत मिथ्या यहाँ, अंतर्मन ही सत्य.. –इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’