एक दोहा दो रूप
एक दोहा दो रूप
मेघों में छिपते नहीं, करते निशिदिन काज।
सूरज से हम तेज हैं, चंदा के सरताज।।
2
हम चंदा सी चाँदनी, सूरज सम हैं आग।
मेघों में छिपते नहीं, रचते खुुद का भाग।।
सूर्यकांत द्विवेदी
एक दोहा दो रूप
मेघों में छिपते नहीं, करते निशिदिन काज।
सूरज से हम तेज हैं, चंदा के सरताज।।
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हम चंदा सी चाँदनी, सूरज सम हैं आग।
मेघों में छिपते नहीं, रचते खुुद का भाग।।
सूर्यकांत द्विवेदी