“एक दूसरे पर हावी हो चुके हैं ll
“एक दूसरे पर हावी हो चुके हैं ll
हम पूर्णतः मायाबी हो चुके हैं ll
ख्वाहिशों के हवामहल तो खड़े कर लिये हैं हमने,
मगर खुशियों की खिडकियों की चाबी खो चुके हैं ll
परिश्रम करने में शर्म आती है,
ठाठ हमारे नवाबी हो चुके हैं ll
प्यार और व्यवहार, व्यापार परस्त हैं,
जीवन के आधार किताबी हो चुके हैं ll
दिखावे और फरेब से भरे पड़े है,
हमारे संकल्प पत्र चुनावी हो चुके हैं ll”