एक दिन
एक दिन
हम अपनी ख़ामोशियों के साथ
यूँ ही राख हो जाएंगे
महज, एक मलाल के साथ
काश हमने भी आवाज़ उठाई होती
महिलाओं से होते बलात्कार के खिलाफ
मज़हब के नाम पर
हो रहे कत्ल ओ गारद के ख़िलाफ
हम भी बोले होते उस दर्द को
महसूस करते
जिस को झेलते हुए बेरोजगारी का
दंश झेलते, खुदकुशी कर लेता है नौजवान
काश, हम भी बोले होते…!!!!
हिमांशु Kulshrestha