Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Jan 2018 · 25 min read

एक दिन कलाकार कुणबे के साथ

एक दिन कलाकार कुणबे के साथ
– विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
मेरे प्रस्तुत यात्रा वृतांत के शीर्षक में ‘कुनबा’ कहें या ‘कुणबा’ बात एक ही है। शाब्दिक अर्थ की दृष्टि से शीर्षक में प्रयुक्त ‘कुणबा’ शब्द से अभिप्रायः सामाजशास्त्र के उस पारिभाषिक शब्द ‘परिवार’ से है जिसे हरियाणा में ‘कुणबा’ कहा जाता है और क्योंकि, मैंने अपने जिस यात्रा-अनुभव से प्रेरित होकर प्रस्तुत लेख लिखा है, उसके केन्द्र में हरियाणा के शिक्षक-साहित्यकार एवं कलाकार आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट और उनके परिवार के दूसरे कलाकार सदस्य रहे हैं, अतः प्रस्तुत यात्रा वृतांत के शीर्षक में ‘कुनबा’ की जगह ‘कुणबा’ शब्द का प्रयोग करना ही मुझे उचित लगा है।
बात 20 जनवरी 2018 की है। इस दिन मेरी प्रथम कृति ‘लोक साहित्यकार: जयलालदास’ का लोकार्पण भिवानी के जयलाल दास पुस्तकालय एवं अध्ययन केन्द्र में हुआ है। क्योंकि मेरी यह कृति श्री आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट जी के स्वर्गीय पिताश्री के जीवन व कार्यों पर आधारित है, अतः इस दिन इस कलाकार कुणबे के साथ मेरा रहना स्वभाविक ही था। मैं सुबह से शाम तक इस कुणबे के साथ रहा और आत्मविश्लेषण के तहत मैंने पाया कि 20 जनवरी 2018 का दिन मेरे लिए बड़ा ही प्रसन्नता और गर्वीला रहा है। मेरी प्रथम कृति के लोकार्पण का यह दिन किसी भी तरह से किसी ज्येष्ठ संतान के जन्मोत्सव से कम नहीं था। दिसम्बर 2017 में पुस्तक के छप जाने के तुरंत बाद से ही इसके लोकार्पण की तैयारियां शुरू हो गई थी। पहले से ही निश्चित था कि इस पुस्तक का लोकार्पण स्वर्गीय जयलाल दास जी की 86वीं जयन्ती पर 20 जनवरी 2018 को आयोजित ‘पुस्तक लोकार्पण एवं सम्मान समारोह’ में करेंगे। मेरी इस कृति पर विचार करने के बाद ‘जयलाल दास पुस्तकालय एवं अध्ययन केन्द्र भिवानी ने मुझे अवगत करवाया था कि मेरी इस कृति पर मुझे ‘जयलाल दास स्मृति साहित्य सम्मान-2018’ भी दिया जा रहा है। अतः इस अवसर पर मेरा अति हर्षित एवं गर्वित होना स्वाभाविक ही था।
20 जनवरी 2018 को, मैं सुबह छः बजे ही उठकर नहा-धो कर तैयार हो लिया था। श्रीमती जी ने नाश्ता तैयार कर दिया था। हल्का-फुल्का नाश्ता करके मैंने अपनी प्रथम कृति (पुस्तक) ‘लोक साहित्यकार: जयलाल दास’ की 12 प्रतियाँ एक पाॅलीथिन में सलीके से जंचाई। इनमें से 11 पुस्तकें गिफ्ट-रैपर में लोकार्पण की विधिवत कार्रवारई के लिए पैक कर रखी थी और एक पुस्तक को खुला छोड़ रखा था। इन पुस्तकों को मैंने अपनी बाईक के बैग में रखा और अपने दस्ताने तथा हेल्मेट डालकर सर्वेश सदन, कोंट रोड़ भिवानी की ओर रवाना हो लिया। चूंकि कल दिनभर धुंध का साम्राज्य स्थापित रहा था, तथापि आज सुबह ठंडी हवा चल रही थी। हल्की-हल्की धुंध भी छाई हुई थी। मैं अपने निर्धारित समय से कम से कम आधा-पौना घण्टा लेट था। मैंने आनंद प्रकाश आर्टिस्ट जी को सुबह साढ़े सात-पैने आठ बजे भिवानी पहुँचने के लिए कहा हुआ था, लेकिन अधिक सर्दी के कारण साढ़े सात बजे मैं अपने कस्बे तोशाम से चल पाया था। भिवानी पहुँचने के लिए 25 किलोमीटर का सफर मुझे अभी और तय करना था। इसलिए घर से निकल पड़ा तो फिर सर्दी की परवाह किए बिना मैं द्रुत गति से अपनी बाईक दौड़ाता हुआ भिवानी की ओर चल पड़ा। रास्ते में आनंद जी का फोन आया तो मैंने ज़ल्दी में होने के कारण उसे रिसीव नहीं किया। मैं जानता था कि आनन्द जी इंतज़ार कर रहे हैं और फोन रिसीव करते ही यही पूछेंगे कि विनोद जी कहाँ पहुँचे हो?
मैं ठीक 8 बजे सर्वेश सदन, कोंट रोड़ भिवानी पहँुचा। मैंने जैसे ही घर के अंदर प्रवेश किया वहाँ आनंद प्रकाश ‘आर्टिस्ट’ जी और धर्मबीर बडसरा, ढ़ाणी माहू जयलाल दास पुस्तकालय एवं अध्ययन केंद्र में बैठे मेरा इंतज़ार कर रहे थे। मुझे देखते ही आनंद प्रकाश ‘आर्टिस्ट’ जी ने कहा-‘‘विनोद हम बहुत लेट हो चुके हैं। अभी हमें झोझू कलां भी होकर आना है। वहाँ स्व. पिता श्री जयलाल दास और माता श्रीमती मनभरी देवी के स्मृति-स्थल पर जाकर पूजा अर्चना करनी है। तब कहीं जाकर यहाँ का ‘पुस्तक लोकार्पण और सम्मान समारोह’ कार्यक्रम शुरू हो पाएगा।’ मैंने उनकी हाँ में हाँ मिलाई। तब तक उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुनीता आनंद जी गर्मागर्म चाय लेकर आ गई थी। मैंने फटाफट चाय को गले से नीचे उतारा। जब तक मैंने चाय पी तब तक सुनीता जी ने पूजा की सारी सामग्री और भोग के लिए बनाए गए प्रसाद को एक थैले में डालकर तैयार कर दिया था। आनंद जी अब किसी भी कीमत पर लेट नहीं होना चाहते थे। इसलिए उन्होंने फटाफट एक पुस्तक पर ‘लेखक विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ की ओर से जयलाल दास मंदिर झोझू कलां को श्रद्धापूर्वक भेंट’ लिखने को कहा। मैंने उनके निर्देशानुसार बाईक के थैले से पुस्तकों का बण्डल निकाला और इस संदर्भ में पहले से ही खुली छोड़ी गई पुस्तक-प्रति पर फटाफट उपरोक्त पंक्तियाँ लिख दी। उसके बाद मैं अपनी बाईक पर अकेला और धर्मबीर बडसरा देवांश की बाईक पर आनन्द जी को अपने साथ लेकर गाँव कोंट की तरफ जाने वाली सड़क पर गाँव झोझू कलां के लिए निकले। आनन्द जी ने बताया था कि मुख्य सड़क मार्ग की बज़ाए यह रास्ता थोड़ छोटा पड़ता है। धर्मबीर बडसरा और मैं उस रास्ते से नावाकिफ थे। इसलिए आनंद प्रकाश ‘आर्टिस्ट’ जी धर्मबीर बडसरा को रास्ता बताते हुए चल रहे थे और मैं उनके पीछे-पीछे चल रहा था। हम कोंट, पूर्णपुरा, मानहेरू और गौरीपुर होते हुए गाँव कितलाना पहुँच कर गाँव झोझू कलां के सड़क मार्ग के उसी रास्ते पर पहुँचे जो कि भिवानी से निमड़ीवाली होते हुए कितलाना चहुँचता है और कितलाना से वाया बरसाना झोझू पहुँचता है। कितलाना मोड़ का चैराहा पार करके हम गाँव डोहकी की तरफ आगे बढ़े और गाँव डोहकी, रासीवास और छपार होते हुए गाँव बरसाना पहुँचे। दादरी-लोहारू मुख्य सड़क मार्ग पर पड़ने वाला गाँव बरसाना यूँ तो शीशवाला-अटेला पहाड़ी शंृखला से काफी दूर है, किन्तु भिवानी की ओर से गाँव के बस स्टेण्ड की तरफ पहुँचते हुए ऐसा लगता है कि जैसे यह गाँव पहाड़ की तलहटी में ही बसा हुआ हो। गाँव बरसाना के बस स्टेण्ड पर पहुँच कर मैंने पाया था कि अब तक हम जिस सड़क से चले आ रहे थे वह सड़क दादरी-लोहारू मुख्य सड़क मार्ग से जुड़ गई थी। हमारे सामने गाँव बरसाना था और दाईं तरफ यह सड़क वाया अटेला-बाढड़ा होकर लोहारू जा रही थी, तो बाईं तरफ वाया बिरही के रास्ते यह चरखी दादरी से जुड़ रही थी। इसी तरफ जाने के बाद गाँव बिरही से दो रास्ते गाँव झोझू कलां की ओर जाते हैं। एक वाया मैहड़ा होकर और दूसरा वाया शीशवाला-तिवाला-बादल होकर। आनन्द जी के कहने पर हम गाँव बरसाना के बस स्टेण्ड पर रुक गए थे। मैं धुंध में दृष्टिगोचर हो रही पहाड़ियों को निहारने लगा था। धर्मबीर बडसरा भी इस रूट पर पहली बार आया था शायद। वह भी मेरे साथ ही पहाड़ियों को निहार रहा था।
आनन्द जी ने राजकुमार पंवार जी को फोन किया ही था कि तभी वो सामने से अपनी बाईक पर आते दिखाई दे गए थे। हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ कृति सम्मान से सम्मानित साहित्यकार राजकुमार पंवार की जयलाल दास जी में अटूट आस्था है। वह उनके जीवनकाल में भी अक्सर उनसे मिलते और साहित्यिक-सामाजिक और पारीवारिक चर्चा करते रहे थे। अतः यह तय था कि जयलाल दास जी की जयन्ती पर गाँव झोझू कलां स्थित उनके समाधि-स्थल पर मात्थ टेकने श्री राजकुमार पंवार जी भी हमारे साथ जाएंगे। वैसे तो राजकुमार पंवार रोहतक ज़िले के मदीना गाँव से हैं, किन्तु शिक्षा विभाग हरियाणा में बतौर प्राध्यापक हिन्दी सेवारत रहने के कारण एक लम्बे समय से गाँव बरसाना में रह रहे हैं और इस दौरान उनका सम्पर्क आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट जी से हुआ है। मिलनसार व्यक्तित्व के धनी समाजसेवी कवि एवं साहित्यकार राजकुमार पंवार जी से मिलकर मैं बड़ा प्रसन्नचित महसूस कर रहा था। उनसे मेरी यह दूसरी मुलाक़ात थी। इससे पहले मैं उनसे 15 अगस्त 2017 को आनन्द जी के 55वें जन्मदिन पर भिवानी में आयोजित काव्य गोष्ठी एवं सम्मान समारोह में मिल चुका था। इसी समय मैंने जाना था कि आनन्द कला मंच एवं शोध संस्थान से जुड़े श्री राजकुमार पंवार जी को उनकी पहली और अब तक की एक मात्र कृति ‘प्रेम के विविध आयाम और उदयभानू हंस’ पर हरियाणा साहित्य अकादमी का श्रेष्ठ कृति सम्मान मिला है।
गाँव बरसाना में राजकुमार के मिलने के बाद हमें तुरंत झोझू कलां के लिए चलना था। राजकुमार जी अपनी बाईक पर ही झोझू कलां चलना चाहते थे। किन्तु आनन्द जी के कहने पर उन्होंने अपनी बाईक गाँव बरसाना के बस अड्डे पर ही किसी दुकानदार की निगरानी में छोड़ दी और हमारे साथ चल पड़े। आनन्द जी और धर्मबीर बडसरा पहले से ही एक बाईक पर थे, अतः राजकुमार जी मेरी बाईक पर बैठे। राजकुमार जी ने कहा कि बरसाना से कच्चे रास्ते पर चलते हुए सीधे गाँव तिवाला पहुँचा जाए। पर आनन्द जी ने कहा कि कच्चे रास्ते की बज़ाए पक्की सड़क से चलना ठीक रहेगा। अतः हम दादरी-लोहारू रोड़ पर गाँव बरसाना से बिरही की तरफ मुड़ते हुए आगे बढे़।
गाँव बरसाना के बाद हम जैसे ही गाँव बिरही कलां की सीमा पर पहुँचे हमारे दाएं हाथ की तरफ एक बहुत बढ़िया सड़क मुड़ती दिखाई दी। हमारे पीछे-पीछे आ रहे आनन्द जी ने फोन पर राजकुमार जी से सम्पर्क करके कहा कि इसी रास्ते चलेंगे यह रास्ता छोटा भी पड़ेगा और वाया मैहड़ा के रास्ते से अच्छा भी मिलेगा। आनन्द जी के कहने पर हम मुख्य सड़क मार्ग छोड़ कर बिरही से तिवला गाँव की ओर मुड़ गए। सामने दिखाई दे रहे नहर के पुल तक यह सड़क हमें बहुत अच्छी मिली, किन्तु इसके बाद, इसके बारे में पहले जितना अच्छा होने की बात हमने की अथवा सोची थी यह सड़क उतनी ही नहीं, बल्कि उससे कहीं अधिक खराब मिली। जे.सी.बी. मशीन से सड़क को पूरी तरह से तोड़ा जा रहा था, पुराने रोड़े उठा-उठा कर सड़क के किनारों पर ढेर किए जा रहे थे और उनकी जगह नए रोड़े डाल कर नई सड़क बनाई जा रही थी। ऐसे में निर्माणाधीन सड़क पर बिछाए गए नुकीले पत्थरों पर बाईक का चलना और चलाना न केवल मुश्किल था, बल्कि खतरे से भी खाली नहीं था और वो भी उस स्थिति में जब कि एक-एक सवारी पीछे भी बैठी हुई हो। अब बाईक की गति बहुत धीमी हो चुकी थी। साथ ही बाईक के फिसलने और कोई नुकीला पत्थर चुभने से अचानक टायर फट जाने का डर भी बराबर बना हुआ था। बीच रास्ते से लौटना भी सम्भव नहीं था। गाँव तिवाला के समीप पहुँच कर विचार बना कि गाँव मैहड़ा की तरफ मुड़ कर नहर के साथ वाले कच्चे रास्ते से होते हुए वाया मैहड़ा होकर झोझू कलां पहुँचा जाए, किन्तु इससे पहले कि हम नहर के पास पहुँच कर कच्चे रास्ते की तरफ मुड़ते सामने बिना तोड़ी हुई सड़क दिखाई दे गई। हमने सोचा कि खराब रास्ता बस यहीं तक था, आगे यदि रास्ता ठीक है, तो अब रास्ता बदलने की आवश्यकता ही क्या है। इतना सोचते ही हम सामने दिखाई दे रहे गाँव तिवाला की ओर बढ़ गए। गाँव तिवाला दो पहाड़ियों के बीच उनकी तलहटी में बसा हुआ गाँव है। इसके बिल्कुल पास ही इसके खेत लगते हैं और खेतों के उस पार पहाड़ियाँ दिखाई दे रही हैं। जैसे-तैसे करके हम गाँव तिवाला से निकल कर गाँव शीशवाला की ओर बढ़े तो सड़क का हाल फिर वही पहले वाला ही मिला। यह हाल सामने दिखाई दे रहे गाँव शीशवाला के पहाड़ तक चला। पहाड़ी दृश्य अच्छे लग रहे थे किन्तु बाईक चलाते वक़्त मेरे लिए सामने के पहाड़ी दृश्यों को नहीं, बल्कि अपने सामने की टूटी सड़क को देखकर पूरी तरह से सम्भल कर चलना ज़रूरी था। अतः मैं धीरे-धीरे बाईक को चला रहा था। धर्मबीर बडसरा और आनंद प्रकाश ‘आर्टिस्ट’ वाली बाईक की रफ्तार भी धीमी पड़ चुकी थी। सड़क पर बिछाए गए रोड़ों के कारण बाईक का संतुलन भी रह-रह कर बिगड़ रहा था। बाईक स्वतः ही इधर-उधर मुड़ रही थी। जैसे-तैसे करके हमने कुल मिलाकर तीन से चार किलोमीटर का सफर बहुत मुश्किल से तय किया। नुकीले पत्थरों पर बाईक से तय किया गया यह सफर हमारे लिए किसी जंग लड़ने से कम नहीं था।
गाँव शीशवाला की पहाड़ी के बिल्कुल पास से गुजरने के बाद हम जैसे ही शीशवाला गाँव के बस अड्डे पर पहुँचे राजकुमार जी ने बाईं तरफ मुड़ने के लिए कहा और साथ ही मुझे बताया कि अब थोड़ी दूर पर गाँव बादल आएगा, बादल के बाद अगला गाँव झोझू कलां है।
गाँव शीशवाला से बादल की तरफ मुड़ने पर मैंने पाया कि यहाँ भी सड़क तोड़ कर नए रोड़े बिछाए गए थे, किन्तु फर्क इतना था कि यहाँ बिछाए गए रोड़ों पर रोलर चला कर मिट्टी डाल कर पानी छिड़का हुआ था, जिसके कारण बाईक चलाना पहले जितना मुश्किल नहीं था। पत्थर के रोड़ों को अच्छी तरह कूट कर जमा दिए जाने के कारण दुपहिया वाहन या अन्य वाहनों के आवागमन में यहाँ उतनी दुविधा उत्पन्न नहीं हो रही थी, जितनी कि बिरही से गाँव शीशवाला के बीच हमें हुई थी। मैंने देखा था कि सामने से हरियाणा रोड़वेज की बस बहुत ही तेज़ गति से आ रही थी। आनन्द जी ने कहा था कि विनोद सोचने वाली बात है कि यदि यह बस सरकारी न होकर निजी होती तो क्या तब भी इसका चालक इस तरह के नुकीले पत्थरों पर इसे यूँ ही दौड़ाता? मैंने कहा था कि ‘‘शायद नहीं, तब तो चालक ईनाम देने पर भी इस रास्ते से बस को नहीं लाता।’’ बस इसी तरह बातें करते-करते हम आगे बढ़ रहे थे कि कुछ ही दूरी पर चलने के बाद गाँव बादल आ गया था। बादल गाँव में पहुँचने पर हम इसकी बाई पास पर पहले पूर्व दिशा में मुड़े थे तो सामने असावरी गाँव की पहाड़ी थी। उसके तुरंत बाद दक्षिण दिशा की ओर मुड़े थे तो यह पहाड़ी पीछे छूट गई थी और बाई पास पर थोड़ा सा चलते ही हम गाँव बादल से बाहर हो गए थे और अब बाएं मुड़ते ही हमारे सामने गाँव बादल से झोझू कलां जाने वाली एक बहुत बढ़िया सड़क हमारे सामने थी। अच्छी सड़क पर आते ही बाईक की गति भी स्वतः ही बढ़ गई थी। सड़क के दोनों तरफ हरे-भरे खेत थे। बैक व्यू मीरर में पीछे एक पहाड़ी दीख रही थी। मैंने राजकुमार पंवार जी से इसके बारे में पूछा था, तो उन्होंने बताया था कि यह गाँव पिचैपा की पहाड़ी है। एक रास्ता गाँव झोझू कलां से गाँव गुडाना होते हुए इस पहाड़ी तक पहुँचता है और दूसरा रास्ता पीछे छोड़े गए गाँव बरसाना से बाढ़ड़ा की ओर जाते समय गाँव बिलावल के बाद बिंदराबन के पास से इस पहाड़ी की ओर जाता है।
राजकुमार पंवार जी से बात करते-करते ही मैं सामने दिखाई दे रहे नहर के साईफन को पार कर गया था। धर्मबीर बडसरा की बाईक मेरे पीछे-पीछे ही थी। उनके पीछे बैठे आनन्द जी उन्हें हाथ के इशारे से कुछ बता रहे थे। सड़क से थोड़ा हट कर सरसों की फसल के दृश्य दिखाई दे रहे थे, तो सड़क के किनारे-किनारे किन्नू के बाग बरबस मेरा ध्यान अपनी ओर खींच रहे थे। इन बागों में और इनसे परे भी खेतों में दूर-पास बनी कई अच्छी-अच्छी रिहायसी कोठियां नज़र आ रही थी। आधुनिक बोलचाल की भाषा में कहें तो इन्हें फार्म हाऊस कहा जा सकता है। इस तरह के किसी भी फार्म हाऊस को किसान की समृद्धि का प्रमाण कहा जा सकता है। अतः मैं मन ही मन सोच रहा था कि यहाँ के किसान वास्तव में काफी समृद्ध हैं। सड़क किनारे के कुछ खेतों में लहलहाती सरसों की फसल भी रह-रह कर मेरा ध्यान अपनी ओर खींच रही थी। ऐसा लग रहा था मानो खेतों ने पीली चुनर ओढ़ रखी हो। प्रकृति का सुरम्य वातारण मन रूपी उद्यान को सुरभित कर रहा था कि इसी बीच सामने एक गाँव दिखाई दिया था। राजकुमार पंवार जी ने बताया था कि यही है गाँव झोझू कलां।
मेरे सामने बाएं से दाएं कहिए कि दाएं से बाएं एक मेन सड़क थी। मतलब कि अब हम गाँव झोझू कलां के बाई पास पर उस टी प्वाईट पर थे, जिसे वहाँ के लोग बादल मोड़ कह कर पुकारते हैं। इससे पहले कि मैं राजकुमार जी से पूछता कि अब किधर मुड़ना है, उन्होंने अपने आप कह दिया था कि सीधे चलते हुए सड़क को पार कर जाओ। मैंने सामने की मेन सड़क पर पहुँचते वक़्त अपने दाएं-बाएं देखा और फिर आगे बढ़ गया। राजकुमार जी ने बताया था कि पीछे जो मेन सड़क छोड़ी है यह दादरी-सतनाली सड़क है। इसी पर पीछे बाई तरफ गाँव का बस स्टेण्ड है। आगे यह गाँव झोझू खुर्द, रामबास, दगड़ोली और कादमा होती हुई सतनाली जाती है। मुझे ध्यान आया कि मैंने इन गाँवों के नाम अपनी कृति ‘लोक साहित्यकार जयलाल दास’ के लिए सामग्री जुटाते समय कई जगह पढ़े व सुने हैं। राजकुमार जी से बात करते-करते ही मैं गाँव झोझू कलां के स्टेडियम के बड़े से गेट के सामने से गुजर गया था। इसके बारे में पूछने की आवश्यकता नहीं थी। चारदीवारी के उस पार बना खेल भवन व विभिन्न खेलों के मैदान अपना परिचय खुद दे रहे थे। इसके बाद बाई पास पर एक चैराहे पर पहुँचे तो राजकुमार जी ने बताया कि दाएं हाथ को जाने वाली सड़क पीछे छोड़ी गई मेन सड़क को क्रास करके सीधी गाँव गुडाना को जाती है और गुडाना से होकर टोडी-निहालगढ़, कुब्जा-पिचैपा और बेरला होती हुई सीधी बाढ़ड़ा पहुँचती है। राजकुमार जी से यह जानकारी पाकर भी मेरे मन में बनी इस क्षेत्र की एक धंुधली सी तस्वीर साफ हुई और पता चला कि पीछे छोड़ी गई मेन सड़क ही घूम कर गाँव झोझू खुर्द के बस अड्डे पर पहुँचती है और उससे पहले ही उससे निकल कर एक सड़क गाँव गुडाना की ओर चली जाती है।
मैंने देखा था कि हमारे बाई तरफ गाँव झोझू कलां था, तो दाईं ओर हरे-भरे लहलहाते खेत थे और खेतों के उस पार एक गाँव नज़र आ रहा था। राजकुमार जी ने बताया था कि, वो जो गाँव दिखाई दे रहा है, वो गाँव झोझू खुर्द है। सामने बाई पास पर पड़ने वाले चैराहे पर पहुँचते-पहुँचते मैंने देखा था कि गाँव झोझू कलां और झोझू खुर्द के बीच अधिक अंतर नहीं है। इसी चैराहे को पार करके एक मकान छोड़ कर दूसरा मकान आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट का पुश्तैनी मकान है। जहाँ कभी लोक साहित्यकार जयलाल दास जी अपने परिवार के साथ रहे थे। अब इस मकान में जयलाल दास जी के छोटे पुत्र राकेश कुमार अपने परिवार के साथ रह रहे हैं।
हम ठीक 10 बजकर 15 मिनट पर आनन्द जी के मकान के सामने थे। पर क्योंकि हम पहले से लेट थे और हमें सबसे पहले बाबा जयलाल दास मंदिर परिसर में पहुँच कर जयलाल दास जी की समाधि पर ज्योति जलाकर धोक लगानी थी। हमने सोचा था कि कहीं मंदिर बंद न हो, इसलिए हम मकान के सामने पहुँच कर मंदिर की चाबी लेने के लिए रुके थे। इससे पहले कि हम अपनी-अपनी बाईक खड़ी करके अंदर जाते, सामने के मकान से एक अधेड़ उम्र की औरत तुरंत हमारे पास आई थी और आनन्द जी को मास्टर जी कह कर सम्बोधित करते हुए उसने हालचाल पूछा था। आनन्द जी से मिली जानकारी के अनुसार इस औरत का नाम सावित्री है और यह रिश्ते में आनन्द जी की भाभी लगती है। सावित्री ने आनन्द जी की पत्नी सुनीता आनन्द और बच्चों (देवांश, सोमेश और सर्वेश) के बारे में भी खड़े-खड़े ही पूछ लिया था। चाय-पानी के लिए भी पूछा था, पर आनन्द जी ने उसे बताया था कि अब हम बहुत ज़ल्दी में हैं। आनन्द जी ने उससे कहा था कि किसी को मंदिर की चाबी लेकर भेज दो हमें पहले वहीं जाना है।
इतना सुनते ही महिला(सावित्री) ने कहा था कि ‘‘अभी भिजवाती हूँ।’’ इतना कहकर वह आनन्द जी के पुश्तैनी मकान की ओर बढ़ गई और हमारे देखते ही देखते अंदर चली गई और हम सब अपनी बाईकों पर आगे बढ़ते हुए मंदिर की ओर चल दिए थे। यहाँ से मंदिर अधिक दूर नहीं था। लगभग दो मिनट बाद हम मंदिर के सामने थे।
जैसे ही हम मंदिर पहुँचे तो हमने देखा कि मंदिर के मेन गेट पर ताला नहीं था। किवाड़ खोल कर अंदर गए तो सामने बाबा मंगलदास की मूर्ति वाली जगह एक खुला ताला लटका हुआ था, इसी ताले में लगी हुई चाबी के साथ एक दूसरी चाबी भी लटकी हुई थी। इसे लेकर आनन्द जी ने ‘जयलाल दास स्मृति-स्थल’ का दरवाज़ा खोला, तो मैंने देखा कि यहाँ जयलाल दास समाधि स्थल पर जयलाल दास और उनके बगल में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती मनभरी देवी की बैठे हुए अवस्था की पूरे आकार की मूर्तियां बिल्कुल पास-पास स्थापित थीं। समाधि-सथल और मंदिर के अंदर तथा बाहर सफाई कर रखी थी। आनंद प्रकाश ‘आर्टिस्ट’ जी ने अपने परिजनों को पहले ही सूचित कर दिया था कि आज वह मंदिर में अपने पिता स्व. श्री जयलाल दास की 86वीं पुण्यतिथि के अवसर पर श्रद्धासुमन अर्पित करने आ रहे हैं। इसलिए हमें सभी तैयारियां यथावत मिली थी। मैंने देखा था कि मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही सामने जिस मूर्ति के दर्शन हुए वह स्व. श्री जयलाल दास जी के गुरु मंगल दास जी की मंूह बोलती प्रतिमा थी। हम सबने उनके चरणों में माथा टेका। मैं उनकी आकर्षक प्रतिमा को एकटक निहारता रहा। मुझे ऐसा आभास हो रहा था कि मैं प्रतिमा का नहीं बल्कि साक्षात गुरु मंगल दास जी के सामने खड़ा हूँ।
आनन्द जी ने गुरु मंगल दास की प्रतिमा के सामने शीश झुकाने के बाद अपने माता-पिता की प्रतिमाओं पर गंगा जल छिड़का और फिर विधिपूर्वक पूजा करने के लिए आवश्यक सामग्री को सम्भाला था। धूप, दीपक, बाती, माचिस आदि सामान मंदिर में भी रखा था और आनंद जी ने सुनीता आनन्द की तरफ से भेजे गए पूजा के सामान को भी अपने थैले से निकाल कर वहाँ रख दिया था। दीपक में घी डाला था और जोत बनाकर दीपक जलाया था। हम सबने बाबा जयलाल दास की मूर्ति के सामने माथा टेका और पूजा-अर्चना की थी कि तब तक गाँव के पूर्व सरपंच श्री राजेश सांगवान भी वहाँ पहुँच गए थे। आनंद जी ने प्रसाद चढ़ाया और मैंने अपनी पुस्तक ‘लोक साहित्यकार: जयलाल दास’ की प्रति अपने आराध्य साहित्यकार एवं गाँव झोझू कलां के गृहस्थ संत स्वर्गीय जयलाल दास की प्रतिमा के श्री चरणों में भेंट स्वरूप चढ़ाई। इसके बाद धर्मबीर बडसरा ने भी भी अपनी पुस्तक उपन्यास ‘कच्ची उम्र’ की प्रति बाबा जयलाल दास जी के श्री चरणों में भेंट की।
पूजा-अर्चना करके लौटते वक़्त मैंने देखा था कि मंदिर परिसर में बाबा मंगलदास के मंदिर और उनके साथ लगते बाबा जयलाल दास समाधि स्थल के ठीक पीछे घास का मैदान था। दक्षिण दिशा में पशुओं और साथ ही रिहायश के लिए दो-तीन कच्चे-पक्के कमरे भी बने थे। कमरों के सामने पेड़ के नीचे गाय-भैंसें बंधी थी। यह सब देख्कर मुझे डाॅ. मनोज भारत की पुस्तक में किया गया जयलाल दास जी के कभी यहाँ निवास करने और उनके पशु-प्रेम का वर्णन याद हो आया। मेरे मन में आया था कि यदि जयलाल दास की जयन्ती पर हर वर्ष यहाँ मेला लगे तो अच्छा रहे। राजकुमार जी मेरे साथ थे। मैं उनसे कुछ कहने को हुआ था कि तभी उन्होंने बताया था कि गत वर्ष जयलाल दास जी की 85वीं जयन्ती पर यहीं पर एक बहुत बड़ा पुस्तक लोकार्पर्ण एवं साहित्यकार सम्मान समारोह आयोजित हुआ था। उस वक़्त यहाँ प्रदेशभर से आए साहित्यकारों की उपस्थिति में पाँच पुस्तकों और ग्यारह साहित्यकारों का सम्मान हुआ था।
मंदिर परिसर से लौटते वक़्त मैंने देखा था कि मेरे ठीक सामने बिल्कुल नज़दीक एक पहाड़ी थी। इस पहाड़ी को निहारते वक़्त मेरे दाएं हाथ की तरफ जाने वाली सड़क के बारे में राजकुमार जी ने बताया था कि यह सड़क गाँव रामलवास को जाती है। मैंने देखा था कि रामलवास की तरफ जाने वाली सड़क की तरफ भी खेतों के उस पार एक पहाड़ी दिखाई दे रही थी। इस पहाड़ी की तरफ से पत्थरों से भरे ट्रक थोड़-थोड़ी देर में आ रहे थे और खाली ट्रक उस तरफ जा रहे थे। ऐसे में यह पूछने की आवश्यकता ही नहीं थी कि इस पहाड़ी का पत्थर दूर-दूर तक जाता है। सामने की पहाड़ी के बारे में आनन्द जी ने बताया था कि यहाँ बाबा गुफाधारी का मंदिर है।
मनोरम प्राकृतिक वातावरण में मेरा मन पूरी तरह से रम गया था। वहाँ से लौटने को दिल नहीं कर रहा था। किन्तु मज़बूरी थी कि हमें भिवानी में आयोजित कार्यक्रम को समय पर शुरू करने के लिए ज़ल्दी लौटना था। अतः 11 बजे के आस-पास हम वहाँ से वापस चल दिए थे। चलते वक़्त सरपंच राजेश कुमार सांगवान ने कहा था कि ‘‘आते वक़्त आप गाँव बादल की तरफ से आए, इसलिए आपको देर लगी क्योंकि उधर का रास्ता बहुत खराब है, आपको मैहड़ा होकर आना चाहिए था।’’ अतः लौटते वक़्त सरपंच राजेश कुमार सांगवान के सुझाए अनुसार हमने मैहड़ा रोड़ होकर चलना ही उचित समझा। हमारे आगे-आगे राजेश कुमार सांगवान अपनी स्कूटी पर था और उसके पीछे-पीछे हम थे। आनन्द जी और राजेश कुमार को अपने गाँव के बीचों-बीच होकर बस अड्डे पर पहुँचने वाले रास्ते की जानकारी थी किन्तु मैं और धर्मबीर बडसरा पहली बार गाँव झोझू कलां की गलियों से गुजर रहे थे। बाबा जयलाल दास मंदिर से गाँव के बीचों-बीच होकर सीधा बस अड्डे पर पहुँचने वाला रास्ता पक्का, चैड़ा व साफ-सुथरा था। आगे वक़्त की तरह धर्मबीर बडसरा और आनन्द जी एक बाईक पर थे और मैं और राजकुमार जी एक पर। सरपंच राजेश कुमार सांगवान मुझसे बात करते हुए मेरे बराबर अपनी स्कूटी पर चल रहे थे। उन्होंने बताया था कि आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट उनके शिक्षक रह चुके हैं। इनके आदर्श व्यक्तित्व एवं उपलब्धियों को दृष्टिगत रखते हुए अपने कार्यकाल में उन्होंने सन् 2012 में इन्हें ‘प्रथम ग्राम-रत्न सम्मान’ से सम्मानित किया था और घोषणा की थी कि भविष्य में जो भी व्यक्ति इनकी तरह से गाँव झोझू कलां का गौरव बढ़ाएगा उसे ‘ग्राम रत्न सम्मान’ से सम्मानित करेंगे। किन्तु इनके बाद किसी भी व्यक्ति का दावा अथवा प्रस्ताव ‘ग्राम रत्न सम्मान’ के लिए ग्राम पंचायत को प्राप्त नहीं हुआ और न ही इनके बाद किसी अन्य को ग्राम पंचायत झोझू कलां द्वारा ‘ग्राम रत्न सम्मान’ से सम्मानित किया गया है। पूर्व सरपंच राजेश कुमार सांगवान की इस बात से मेरे अध्ययन की इस बात की भी पुष्टि हुई कि ग्राम पंचायत झोझू कलां की ओर से दिए गए एवं घोषित किए गए ‘ग्राम रत्न सम्मान’ का रिकोर्ड आज भी आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट के नाम है। ग्राम सुधार व समाजसेवा विषयक अपने कामों की चर्चा करते हुए राजेश कुमार ने बताया कि अपने कार्यकाल में उन्होंने गुण्डागर्दी और दादागरी पर पूरी तरह अंकुश लगाया था। किसी भी गुण्डे-बदमाश की हिम्मत नहीं थी कि वह किसी को तंग करे या किसी की बहन-बेटी को छेड़े। वर्तमान गतिविधियों के बारे में पूछने पर राजेश ने कहा था कि ‘‘अपने सरपंची के कार्यकाल के बाद भी मैं समाज व गाँव भलाई के कामों में संलग्न रहा हूँ। गत वर्ष दिवंगत हुए राजबीर प्रधान की स्मृति में उनकी प्रथम पुण्य तिथि से हमने ‘खेल रत्न अवार्ड’ शुरू किया है। इससे न केवल तेरह गाँव के प्रधान रहे राजबीर प्रधान की स्मृति बनी रहेगी, बल्कि इलाके की खेल-प्रतिभाएं भी प्रोत्साहित होंगी।’’
गाँव झोझू कलां के पूर्व सरपंच राजेश कुमार से बातें करते-करते ही हम गाँव झोझू कलां के बस अड्डे पर वहाँ आ पहुँचे थे जहाँ से वाया मैहड़ा-बिरही कलां होते हुए रास्ता भिवानी पहुँचता है। राजेश से विदा लेकर हम इस रास्ते पर आगे बढ़ गए। इस रास्ते पर आगे बढ़ते ही सबसे पहले हमारे बाएं हाथ की ओर झोझू कलां महिला काॅलेज आया फिर दाईं तरफ उत्तर-पूर्व दिशा में पहाड़ी पर बना बाबा दोहला का मंदिर दिखाई देने लगा। इसके बाद असावरी मोड़ आया और फिर हम मैहड़ा गाँव के मोड़ पर मुड़ने की बज़ाए गाँव के बीचों-बीच होते हुए मुख्य सड़क पर पहुँचे। इसी सड़क रास्ते से हम गाँव बिरही कलां और फिर बरसाना पहुँचे। बरसाना के बाद का रास्ता वही था, जिस रास्ते से होकर हम आते वक़्त आए थे। बरसाना पहुँच कर राजकुमार जी अपनी बाईक लेकर चलने का विचार कर रहे थे, किन्तु आनंद जी ने उन्हें मना कर दिया था। कहा कि ‘‘अपनी बाईक यहीं खड़ी रहने दो, शाम को आते वक़्त ले लेना।’’
इसके बाद हम बरसाना में बिना रुके भिवानी की ओर चलते चले गए थे। आगे-आगे धर्मबीर बडसरा और आनन्द जी थे ओर उनके पीछे-पीछे मैं और राजकुमार पंवार जी। राजकुमार पंवार जी रास्ते भर अपने कार्य क्षेत्र के बारे में मुझे बताते रहे थे कि उन्होंने गाँव पिचैपा के स्कूल में स्थानान्तरण से पहले गाँव छपार में भी कई साल तक सेवा की है। वह बताते रहे थे और मैं रुचि के साथ उनकी बातें सुनता रहा था। बातों-बातों में पता ही नहीं चला था कि हम कब सर्वेश सदन, कोंट रोड़ भिवानी पहुँच गए। वहाँ पहुँच कर हमने देखा था कि समारोह के अध्यक्ष हिसार के वरिष्ठ कवि श्री महेंद्र जैन जी, विशिष्ट अतिथि डाॅ. तिलक सेठी हिसार, जयलाल दास पुस्तकालय एवं अध्ययन केन्द्र भिवानी के संरक्षक स्व. श्री जयलाल दास जी के छोटे भाई मेजर शमशेर सिंह एडवोकेट हमसे पहले पहुँच चुके थे। हमने वहाँ पहुँच कर सबका अभिवादन किया। इन सब महानुभावों से मेरा परिचय पहली बार हुआ।
कुछ ही देर में मुख्य अतिथि डा. मनोज भारत महामंत्री अखिल भारतीय साहित्य परिषद् हरियाणा और विशिष्ट अतिथि डाॅ. तेजिंद्र कैथल भी कार्यक्रम में उपस्थित हो गए थे। धीरे-धीरे एक-एक करके सभी एकत्रित होने लगे। आनंद प्रकाश ‘आर्टिस्ट’ ने मंच संचालन का कार्यभार संभाला। उसके बाद आनंद कला मंच एवं शोध संस्थान, भिवानी तथा जयलाल दास पुस्तकालय एवं अध्ययन केंद्र भिवानी के अध्यक्ष आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट और उनकी धर्मपत्नी एवं लोक साहित्यकार जयलाल दास की पुत्रवधू श्रीमती सुनीता आनन्द और सुपौत्रों देवांश, सोमेश और सर्वेश द्वारा अतिथियों के स्वागत-सत्कार के बाद आयोजन के अध्यक्ष महेन्द्र जैन व अन्य अतिथियों को साथ लेकर लोक साहित्यकार जयलाल दास के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन किया। इसी समय विजय शर्मा द्वारा किए गए मंत्रोच्चारण के साथ सभी ने जयलाल दास जी के चित्र पर माल्यार्पण किया और उपस्थित जनो ने बारी-बारी से पुष्प् अर्पित किए। इसके बाद पुस्तक लोकार्पण एवं सम्मान समारोह का आयोजन हुआ और उपस्थित जनों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए।
इस आयोजन में मेरी पुस्तक ‘लोक साहित्यकार जयलाल दास’(जीवनी) आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट की पुस्तक ‘खोया हुआ विश्वास’(उपन्यास) धर्मबीर बडसरा की पुस्तक ‘कच्ची उम्र’(उपन्यास) और ईश्वर सिंह खिंच्ची की पुस्तक ‘वे दिन’(बाल कविताएं) का लोकार्पण किया गया।
पुस्तक लोकार्पण के बाद मुझे ‘जयलाल दास स्मृति साहित्य सम्मान-2018’, विनीता मलिक ‘नवीन’ को श्रीमती मनभरी देवी स्मृति साहित्य सम्मान-2018, डाॅ. नन्दकुमार भारद्वाज, घनश्याम जांगड़ा, और धर्मवीर बडसरा को जयलाल दास साहित्य साधक सम्मान-2018, श्रीमती मीना भार्गव और श्रीमती दर्शना जलंधरा ‘खुशबू’ को श्रीमती मनभरी देवी साहित्य साधिका सम्मान-2018, प्रकाशक अरुण कुमार गुप्ता नई दिल्ली और श्री विपेन्द्र पाल सिंह को जयलाल दास प्रकाशकश्री सम्मान-2018 से अलंकृत किया गया। जयलाल दास और श्रीमती मनभरी देवी स्मृति साहित्य सम्मान में प्रमाण-पत्र, एक हजार एक सौ रूपए की नकद राशि, शाॅल तथा स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया। साहित्य साधक अथवा साधिका को प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया।
पुस्तक लोकार्पण एवं सम्मान समारोह के बाद आयोजित काव्य गोष्ठी में कवियों ने देशभक्ति, शृंगार और सामाजिक विषयों पर अपनी कविताओं से श्रोताओं को हँसाया व गुदगुदाया। काव्य गोष्ठी की शुरूआत अनिल शर्मा ‘वत्स’ द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुई। तत्पश्चात एक के बाद एक कवि और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं से समां बांधा। मुझे भी काव्य-पाठ करने का अवसर प्राप्त हुआ। मैंने ‘बरस अनेकों गुजर गए पर ये देश वैसा ही आज भी है…’ कविता प्रस्तुत की। मेरी कविता पर बजी तालियों से मुझे लगा कि मेरा प्रयास सफल रहा है। आनंद प्रकाश आर्टिस्ट जी ने भी अपनी एक ग़ज़ल प्रस्तुत की। ग़ज़ल का मतला था -‘‘मेरी यह कमज़ोरी रही है, सबसे बढ़कर। मैं बेगानों में अपने ढंूढता रहा हूँ।।’’ आनंद प्रकाश आर्टिस्ट जी के पुत्रों सोमेश, देवांश और सर्वेश ने भी काव्य पाठ कर यह जता दिया कि ‘‘माँ पर पूत, पिता पर घोड़ा – घणा नहीं, तो थोड़ा-थोड़ा।’’ काव्य गोष्ठी का समापन महेन्द्र जैन की ग़ज़ल से हुआ। काव्य गोष्ठी का संचालन डाॅ. मनोज भारत ने किया।
पुस्तक लोकार्पण एवं सम्मान समारोह के संदर्भ में विशिष्ट अतिथि डाॅ. तेजिंद्र कैथल ने अपने वक्तव्य में कहा कि ‘‘लोक साहित्यकार जयलाल जी की 86वीं जयंती पर मैं उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और उनके ज्येष्ठ आनंद प्रकाश ‘आर्टिस्ट’ को इस सफल कार्यक्रम के लिए बधाई देता हूँ। जयलाल दास जी यकीनन बहुमखी प्रतिभा के धनी थे। मैं उनके परिवार के सभी जनों का धन्यवाद करता हूँ कि उन्होंने जयलाल दास के 86वें जन्मदिवस को यादगार बनाने के लिए स्थानीय एवं आस-पास के साहित्यकारों को सम्मानित करने के लिए पुस्तक लोकार्पण एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया। ‘जयलाल दास स्मृति साहित्य सम्मान-2018 से सम्मानित तोशाम निवासी विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ और ‘श्रीमती मनभरी देवी स्मृति साहित्य सम्मान-2018’ से सम्मानित श्रीमती विनीता मलिक ‘नवीन’ को भी मैं बधाई देता हूँ।’’
डाॅ. तेजिन्द्र ने गृहस्थ संत जयलाल दास जी की 86वीं जयन्ती पर स्मरणाजंलि स्वरूप अपनी एक स्वरचित एवं फ्रेम जड़ित कविता भी आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट जी को भेंट की। कविता की आरम्भिक पंक्तियां हैं -‘‘गृहस्थ संत जयलाल दास जी, करते हम प्रणाम तुम्हें। याद आपको हम सब बच्चे करते आठों याम तुम्हें।।’’
हिसार से आए डाॅ. तिलक सेठी ने कहा-‘‘एक सच्चे साधक के रूप में जयलाल दास जी को सदा स्मरण रखा जाएगा। आज उनकी 86वीं जयंती पर मैं उनके चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ। आनंद प्रकाश ‘आर्टिस्ट’ सही अर्थों में साहित्य-सेवा का धर्म निभा रहे हैं। इन्होंने अपने पिता की स्मृति में ‘जयलाल दास पुस्तकालय एवं अध्ययन केंद्र’ की स्थापना कर पितृभक्त होने का प्रमाण दिया है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि यह दिन दो गुनी रात चैगुनी उन्नति करे।’’
चरखी दादरी से आए साहित्यकार हिन्दीसेवी रामनिवास शर्मा ने कहा-‘‘जयलाल दास की 86वीं जयंती पर मैं उन्हें शत-शत नमन् करता हूँ और इनके परिजनों को इस आयोजन के लिए बधाई देता हूँ।’’
हिसार से पधारे समारोह के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ कवि महेंद्र जैन ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि -‘‘किसी कार्यक्रम की अध्यक्षता करना उपहार भी है और भार भी है। मुझे आनंद जी ने यह सम्मान बख्शा इसके लिए मैं इनका धन्यवाद करता हूँ। आज यह मेरा सौभाग्य है कि आनंद जी ने मुझे आप सब लोगों के मध्य आने का अवसर प्रदान किया, आपसे मिलने का, आपको सुनने का और सुनाने का अवसर प्रदान किया। इससे बड़ा अवसर क्या होगा कि हम लोक साहित्यकार जयलाल दास जी की 86वीं जयंती मना रहे हैं और एक दूसरे परिचचित हो रहे हैं। इसके लिए मैं आनंद जी के परिवार को और आप सभी को बहुत-बहुत बधाई देना चाहँूगा। आनंद जी ने कई बार कहा इन्हें प्रेरणा मुझसे मिली है, मैं इस बात को कुछ हद तक ठीक मानता हूँ। परंतु इनमें काबिलियत थी, तभी यह इस मुक़ाम को हासिल कर पाए। यह बड़ा ही खुशी का अवसर है कि आज हम एक ऐसे परिवार में एकत्रित हुए हैं जो अपने पिताश्री की 86वीं जयंती को श्रद्धापूर्वक मना रहा है। मैं इन्हें और बाऊ जी अर्थात् जयलाल दास जी को भी अपने श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ। विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ ने अपनी कृति ‘लोक साहित्यकार: जयलाल दास’ में जो लिखा है उसी को मैं आपके मध्य प्रस्तुत कर रहा हूँ कि जयलाल दास जी हरियाणवी संस्कृति के उपासक, भक्त-कवि एवं गीतकार थे। हनुमान जी के परम भक्त, सामाजिक कार्यकर्ता एवं उच्च कोटि के कथावाचक, अनूठे व्यक्तित्व के धनी श्री जयलाल दास जी को उनकी 86वीं जयंती पर मैं महेंद्र जैन भी व्यक्तिगत रूप से और मेरी संस्था चंदन बाला जैन साहित्य मंच की ओर से उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ।’’
जयलाल दास पुस्तकालय एवं अध्ययन केंद्र संस्था के संरक्षक एवं लोक साहित्यकार जयलाल दास जी के छोटे भाई मेजर शमशेर सिंह एडवोकेट ने सभी का आभार व्यक्त किया। इस समारोह में हरियाणा के विभिन्न ज़िलों से साहित्यकार आए और एक-दूसरे से अपनी-अपनी कृतियों का आदान-प्रदान किया। दोपहर सवा बारह बजे शुरू हुआ आयोजन शाम पाँच बजे तक चला। पुस्तक लोकार्पण, सम्मान समारोह तथा काव्य पाठ के पश्चात सबने प्रसाद रूप में भोजन किया और हँसते-हँसते प्रस्थान किया। आयोजन समपन्न हो चुका था, किन्तु आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट जी के साहित्यिक कुणबे के लोग अब भी आ रहे थे और देर शाम तक आते रहे थे। अंधेरा होते-होते मैंने भी आनन्द जी और उनके कलाकार कुणबे से विदा ली थी और अपने कस्बे तोशाम की ओर अपनी बाईक पर चल पड़ा था। घर पहुँचा तो मन में विचार आया कि आज की अपनी इस अविस्मरणीय साहित्यिक यात्रा को लेकर मुझे कुछ लिखना चाहिए। बस उसी विचार का क्रियान्वित रूप है मेरा यह यात्रा वृतांत। सच में इस कलाकार कुणबे के साथ व्यतीत किए अपने इस दिन को मैं अपने जीवन में कभी भुला नहीं पाऊँगा। मेरी पहली कृति के लोकार्पण एवं साथ ही मेरे सम्मान की वज़ह से यह दिन मेरे लिए अति हर्ष एवं गर्व का तो था ही, साथ ही ‘जयलाल दास के समाधि एवं स्मृति-स्थल’ की यात्रा में जो आनन्द आया उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। मैंने राजकुमार पंवार और गाँव झोझू कलां के पूर्व सरपंच राजेश कुमार सांगवान से चर्चा के दौरान गाँव झोझू कलां और स्वर्गीय जयलाल दास जी के बारे में जो कुछ सुना और अपनी आँखों से देखा उससे मेरे पूर्व ज्ञान की पुष्टि तो हुई ही है, साथ ही मेरे भावी लेखन को भी एक सुदृढ़ आधार मिला है। ‘खुद आगे बढ़े, औरों को बढ़ाया’ शीर्षक से आनन्द जी के बारे में बहुत पहले एक समाचार पत्र में प्रकाशित लेख को लेकर किसी से चर्चा के दौरान इनके बारे में जैसा सुना था, वैसा ही मैंने पाया भी है। कहना ग़लत न होगा कि साहित्य एवं कला के पथ पर आज यह अकेले नहीं हैं, इनका पूरा कुणबा इनके साथ है। तभी मैंने अपने इस यात्रा वृतांत को शीर्षक दिया है – एक दिन कलाकार कुणबे के साथ।

Language: Hindi
Tag: लेख
437 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
लगता है अपने रिश्ते की उम्र छोटी ही रही ।
लगता है अपने रिश्ते की उम्र छोटी ही रही ।
Ashwini sharma
गाँव की प्यारी यादों को दिल में सजाया करो,
गाँव की प्यारी यादों को दिल में सजाया करो,
Ranjeet kumar patre
रहिमन ओछे नरम से, बैर भलो न प्रीत।
रहिमन ओछे नरम से, बैर भलो न प्रीत।
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
चेहरे पे चेहरा (ग़ज़ल – विनीत सिंह शायर)
चेहरे पे चेहरा (ग़ज़ल – विनीत सिंह शायर)
Vinit kumar
"अकेलापन की खुशी"
Pushpraj Anant
हम चुप रहे कभी किसी को कुछ नहीं कहा
हम चुप रहे कभी किसी को कुछ नहीं कहा
Dr Archana Gupta
ସେହି ଲୋକମାନେ
ସେହି ଲୋକମାନେ
Otteri Selvakumar
"शौर्य"
Lohit Tamta
बचपन में थे सवा शेर जो
बचपन में थे सवा शेर जो
VINOD CHAUHAN
मायके से लौटा मन
मायके से लौटा मन
Shweta Soni
जय माँ ब्रह्मचारिणी
जय माँ ब्रह्मचारिणी
©️ दामिनी नारायण सिंह
चोर साहूकार कोई नहीं
चोर साहूकार कोई नहीं
Dr. Rajeev Jain
लहरों ने टूटी कश्ती को कमतर समझ लिया
लहरों ने टूटी कश्ती को कमतर समझ लिया
अंसार एटवी
प्री वेडिंग की आँधी
प्री वेडिंग की आँधी
Anil chobisa
जीवन की नैया
जीवन की नैया
भरत कुमार सोलंकी
आदमी आदमी के रोआ दे
आदमी आदमी के रोआ दे
आकाश महेशपुरी
.
.
Shwet Kumar Sinha
..
..
*प्रणय*
थोड़ा सा अजनबी बन कर रहना तुम
थोड़ा सा अजनबी बन कर रहना तुम
शेखर सिंह
कितना तन्हा, खुद को वो पाए ।
कितना तन्हा, खुद को वो पाए ।
Dr fauzia Naseem shad
चर्बी लगे कारतूसों के कारण नहीं हुई 1857 की क्रान्ति
चर्बी लगे कारतूसों के कारण नहीं हुई 1857 की क्रान्ति
कवि रमेशराज
ज़रा मुस्क़ुरा दो
ज़रा मुस्क़ुरा दो
आर.एस. 'प्रीतम'
पुरानी यादें, पुराने दोस्त, और पुरानी मोहब्बत बहुत ही तकलीफ
पुरानी यादें, पुराने दोस्त, और पुरानी मोहब्बत बहुत ही तकलीफ
Rj Anand Prajapati
"द्रौपदी का चीरहरण"
Ekta chitrangini
हिंदी है भारत देश की जुबान ।
हिंदी है भारत देश की जुबान ।
ओनिका सेतिया 'अनु '
हर महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि
हर महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि
Shashi kala vyas
वृक्षों की भरमार करो
वृक्षों की भरमार करो
Ritu Asooja
दिकपाल छंदा धारित गीत
दिकपाल छंदा धारित गीत
Sushila joshi
*ताना कंटक सा लगता है*
*ताना कंटक सा लगता है*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
Loading...