एक दिन इतिहास लिखूंगा
दीप हूँ जलता रहूँगा ।
मैं प्रलय की आँधियों से, अन्त तक लड़ता रहूँगा ।।
जीत जाऊँगा मेरा साहस, कभी हारा नहीं है।
जो मिटा अस्तित्व दे, ऐसी कोई धारा नहीं है ।।
कौन रोकेगा स्वयं तूफान, थककर रुक गए हैं ।
हर लहर मेरा किनारा, ध्येय तक बढ़ता रहूँगा।।
तोड़ दी अवरोध की, सारी शिलाएँ एक क्षण में ।
देते धरा का प्यार मुझको, स्नेह देते सब डगर में।।
बिजलियों की कौंध में भी, पन्थ गढ़ता ही रहूँगा।।
कर लिया विषपान शिव हूँ, साजिशें मेरा क्या करेगी।
मैं स्वयं जय हूँ, पराजय फिर मुझे क्यों कर वरेगी॥
हूँ स्वयं संकल्प पथ पर सतत बढ़ता ही रहूँगा ॥
दीप हूँ जलता रहूँगा ।
मैं प्रलय की आँधियों से, अन्त तक लड़ता रहूँगा ।।
#अबोध
“आप दूसरों के साथ वही व्यवहार करो जो आप दूसरों से अपने लिए अपेक्षित करते हैं”_ 👍