एक तिनका
मैं घमंड से चकनाचूर ऐंठा हुआ ,एक दिन जब था मुंडेर पर खड़ा।आ अचानक दूर से उड़ता हुआ तिनका आंख में पड़ा। मैं झिझक उठा बैचेन हुआ,लाल होकर आंख दुखने लगी।भूक देने लगा, कपड़े की ऐड बिचारी दवे पांव भगी।जब किसी ढंग से निकला तिनका, गया तब समझ ने यों ही ताने दिये , ऐंठता तू किसलिए इतना रहा ,एक तिनका है तेरे लिए।।