एक तमाशा ऐसा भी !
तमाशा तो आप सभी ने देखा होगा ही होगा । एक योजनाबद्ध तरीके से दर्शकों के मनोरंजन के लिए खेला गया खेल ही तमाशा है, लेकिन आज मैं आप सभी को जिस तमाशे के बारे में बताने जा रही हूं वो खेल तमाशे की परिभाषा से मेल तो नहीं खाता फिर भी वह एक तमाशा ही है।
मैंने एक लेखिका होने के अपने कर्तव्य को पूरा करना सही समझा, और निष्पक्ष भाव से यथार्थ का चित्रण किया है । इस तमाशे को मैने भी देखा है, इसलिए ये मेरी जिम्मेदारी है को मैं आपको भी इस तमाशे का सच दिखाऊँ। ये जिंदगी का खेला गया असली तमाशा है जिसके निर्देशक भी हालत ही है, बाकी इस तमाशे से सबका कितना मनोरंजन हुआ, यह तो दर्शकों की भावनाओं पर निर्भर है, किंतु यह तमाशा सौ प्रतिशत सच्चा है, आश्चर्य की बात तो यह है मित्रों कि इस तमाशे के मुख्य किरदार को भी यह नहीं पता था कि क्या होने वाला हैं। तो चलिए मैं देर ना करते हुए आपको इस अनोखे तमाशे के विषय में बताती हूं।
रोशनी को अपने काम पर अभिमान था, वो बहुत खुश रहती थी, और अपने सभी मित्रों को भी खुश रखना चाहती थी। सबकी मदद करना उसका स्वभाव था। उसके इसी स्वभाव की वजह से सब उस से बहुत प्यार भी करते थे। वह अपने कार्यस्थल पर रोज सुबह छः बजे निकलती और शाम पांच बजे तक वापस आती थी। उसके बाद वह एक बहु, पत्नी और मां होने का फर्ज अदा करती । एक दिन की बात थी, उसे उसके काम से थोड़ी जल्दी छुट्टी मिली थी क्योंकि घर पहुंचकर उसे एक ऑनलाइन मीटिंग में शामिल होना था, उस मीटिंग में उसे अपने काम को और बेहतर बनाने के तरीके सिखाए जाने वाले थे। वो बहुत खुश थी कुछ नया सीखने के लिए, लेकिन उसका शरीर थक के चूर था। आंखों में नींद होने की वजह से वह अपना मुंह धोकर मीटिंग में बैठी। मीटिंग में अपनी उपस्थिति दिखाने के लिए सभी में कैमरा ऑन करके रखा था। रोशनी ने भी वही किया । मीटिंग लगभग दो घंटे की थी। मीटिंग के डेढ़ घंटा बीत जाने के बाद रोशनी को भूख बर्दास्त नहीं हुई उसने खाना निकालकर मीटिंग के दौरान ही खा लिया , खाना खाने के बाद उसने अपने उन फॉर्मल कपड़े को बदलकर थोड़ा आराम करना चाहा ,मीटिंग लगभग समाप्त होने की कगार पर था । रोशनी ने जल्दी ही सारे सवालों के जवाब भी दे दिए थे। मीटिंग को खत्म होने में सिर्फ दस मिनट ही शेष बचे थे, उसने अपना कैमरा ऑफ किया और अपने कपड़े बदलने लगी, कुछ ही मिनट बाद उसे अहसास हुआ कि उस से कुछ गलती हो गई है, उसने जो कैमरा ऑफ किया था दरअसल वह ऑफ नही हो पाया था, अब उसे एक ही पल में पूरी दुनियां ही उलटी नजर आने लगी, उसकी अंतरात्मा उसे धिक्कारने लगी, कुछ पलों के लिए वह जैसे मुर्दा हो गई थी, मानो उसके प्राण सूख गए हों , वह बार बार सोच रही थी कि यह उससे क्या हो गया।
उसने अपनी जिंदगी को खुद अपने हाथो बरबाद कर लिया। यह एक ऐसा तमाशा था जिसकी मुख्य किरदार वह स्वयं थी, इस बात का उसे बिलकुल भी अंदाजा नहीं था ? रो रो कर उसने अपना बुरा हाल कर लिया, लेकिन अब वह क्या करेगी? दर्शकगण उस तमाशे पर क्या प्रतिक्रिया देंगे? क्या वह फिर से अपने उसी आत्मविश्वास के साथ अपने जीवन में आगे बढ़ पाएगी या फिर लोग उसकी भर्तसना करने लगेंगे? ये सारे सवाल मानो उसकी जान ही ले रहे थे। उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था ।
इस तमाशे को देखकर सभी खामोश थे। रोशनी बैचेन थी, वह सबको चीख चीख कर कहना चाहती थी कि कोई उसे गलत ना समझे, यह तमाशा अनजाने में हुआ, लेकिन किसी ने उसके दर्द को समझने की कोशिश नहीं की।
जिंदगी के इस तमाशे के बाद रोशनी अब खामोश है, अकेली है, निस्तब्ध है। वह सबकी उन खामोश आंखों से एक ही सवाल पूछ रही है कि मित्रों “तमाशा कैसा लगा”?