ग़ज़ल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
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बारिशों में कुछ पतंगें भी उड़ा लिया करो दोस्तों,
नज़्म तुम बिन कोई कही ही नहीं।
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मैं पत्थर की मूरत में भगवान देखता हूँ ।
उससे कोई नहीं गिला है मुझे
भारत कभी रहा होगा कृषि प्रधान देश
कल रात सपने में प्रभु मेरे आए।
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
23/179.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
दीवाने खाटू धाम के चले हैं दिल थाम के
ज़िंदगी ने अब मुस्कुराना छोड़ दिया है
दो दिन की जिंदगी है अपना बना ले कोई।
फिर एक आम सी बात पर होगा झगड़ा,
*कितनों से रिश्ते जुड़े नए, कितनों से जुड़कर छूट गए (राधेश्य