*मन् मौजी सा भँवरा मीत दे*
हम भी कहीं न कहीं यूं तन्हा मिले तुझे
देवो रुष्टे गुरुस्त्राता गुरु रुष्टे न कश्चन:।गुरुस्त्राता ग
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
आसान नहीं हैं बुद्ध की राहें
समय बदलता तो हैं,पर थोड़ी देर से.
दिन निकलता है तेरी ख़्वाहिश में,
umesh vishwakarma 'aahat'
*सत्पथ पर यदि चलना है तो, अपमानों को सहना सीखो ( राधेश्यामी
क्यों इस तरहां अब हमें देखते हो
मेरी एक बार साहेब को मौत के कुएं में मोटरसाइकिल