एक ज़िद थी
एक ज़िद थी
जो टूट गई
खुशनुमा हुआ करती थी
शाम, जो खो गई
एक साथ था मनभावन
वो छूट गया
एक राह चलना चाहते थे
जो हम साथ साथ
हुआ करती थी गुलस्ता सी
साथ भी ख़त्म हुआ
राह हुई बेनूर
मुहब्बत जिसे जीता रहा
उम्र भर
खाक हुई
एक ज़िंदगी थी मेरी
जो भ्रम थी, अब राख हुई
हिमांशु Kulshrestha