एक छोटा-सा घर है फटे-पुराने कपड़े है,सुबह-शाम रोटी नसीब हो ज
एक छोटा-सा घर है फटे-पुराने कपड़े है,सुबह-शाम रोटी नसीब हो जाती हैयहीं मेरी औकात है….!!
मैं चांद-तारे तोड़ कर लाने के वादे नहीं करता,मगर बात ही जब डींगे हांकने की तो मैं पीछे नहीं हटता..!!
अब मैं कुछ फेंकता करता हूं सुनो..!!
तेरे चेहरे से है रौशन यह सारा आसमां ,कहो तो यह चांद बुझा दूं।।
कर जाऊं तेरे इश्क़ में कुछ ऐसा, हो इजाज़त तो,तारों के शहर को तुम्हारे आंगन में बसा दूं।।
कोन कहता है गूंगे बोलते नहीं , तुम कहकर तो देखो,तुम्हारी तारीफ़ उन्हीं से करवा दूं।।
एक बार हस तो दे मेरे यार , तेरे लिए,ख़ुदा से कहकर इन बादलों से भी बारिश करवा दूं।।
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