एक छत एक सूत्र में बंधे रहने के लिए हम क्या करें,
मुझे नहीं लगता हमारे देश समाज में,
कोई ऐसा.. मंच/ताकत/छत बची है,
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संविधान के अलावा,
जो इस समाज को एक छत्र के नीचे,
संजोएं रख सके !!
??
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आजतक हम अबतक,
अपनी मूलभूत चीजों के लिए झुझारू हैं,
जैसे सैनेटरी पैड,शौचालय, स्वच्छता,
आजीविका, मकान,कपड़ा, कापी-किताब,
आदि-आदि.. इत्यादि,,
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इन असुविधाओं के लिए,
जिम्मेदार कौन ???
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शायद जवाब नहीं हैं,
बहाने बनाने वाले,
पाखंड को सिंचने वाले ,
कभी जवाब नहीं देते !!
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हम बस खिलाफ हैं,
कहीं से सहमत नहीं,
वंदेमातरम् इस पर भी एक नहीं,
ऐसा क्यों,
सम्प्रदाय बड़ा के देश,
संविधान बड़ा के सरकारें,
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स्वावलंबी बन नहीं सकते,
विकासशील हैं.. बात दंश नहीं करती,
बात मजहब की हो,
बात जाति की हो !
सबसे पहले अखरती है,
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जरा ठहरे ! थोड़ा सोचें !! फिर आगे बढ़ें !!!
हम सब पहले भारतीय हैं,
बाद मे कुछ और !!
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डॉ0महेंद्र.
वंदेमातरम्