एक चिन्ता पर्यावरण की
सोहन रेल से अपने पापा के साथ लखनऊ जा रहा था , रात हो गयी थी सब लोग सो गये थे लेकिन सोहन खिड़की के पास बैठा बाहर देख रहा था । चाँद उसके साथ साथ चल रहा था , रास्ते में कही नदी पड़ती तो कहीं पेड़ थे । वह देख रहा था नदी सिमटती जा रही है , उसके आसपास पोलीथिन और गंदगी भरी थी । इसी तरह बहुत सारे पेड़ो को काट दिया गया तो
कई सूख रहे थे और अपना दर्द बयां कर रहे थे ।
उसका बाल मन सोचने लगा अगर यही हालात रहे तो आने वाले समय में मानव जीवन खतरे में पड़ जाएगा ।
उसने संकल्प लिया वह अपने दोस्तों के साथ पर्यावरण बचाने और शुद्ध प्रदूषण रखने के लिए काम करेगा ।
तभी सोहन के पापा जाग गये ।
सोहन ने अपनी चिंता और बात पापा को बताई , तब पापा ने भी सोहन का साथ देने का कहा ।
एक से एक हाथ जोड़ते हुए आज उन्होंने एक स्वयं सेवी संस्था बना और सतत् काम रहे है । इन्हें पुरस्कार भी मिला है ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल