एक गुल्लक रख रखी है मैंने,अपने सिरहाने,बड़ी सी…
एक गुल्लक रख रखी है मैंने,अपने सिरहाने,बड़ी सी…
रोज रात को सोने से पहले,भर देता हूं उसमें
दिन भर का विषाद, किसी के ताने, किसी के उलाहने
किसी के लिए जलन,और किसी के प्रति गुस्सा
सब ही समाहित हो जाते हैं
उस गुल्लक में,और यूं रीत हो जाता हूं मैं
खो जाता हूं, सुंदर सपनों में, जब भी दिल भारी होता है
उडे़ल कर सब बोझ
उस गुल्लक में , हल्का हो जाता हूं मैं
चाबी खो दी है उसकी मैंने ,तोड़ने उसे नहीं कभी वाला हूँ मैं
एक और गुल्लक भी है मेरे पास,उसमें जमा करता हूं मैं दुआएं
रोज सुबह उसमें से कुछ दुआएं,निकालता हूं..
दिन भर खर्चता हूं,फिर डरता हूं कि कहीं
गुल्लक रीत न जाए।
भरता हूं दिन प्रतिदिन उसे,लोगों की दुआओं से
कि आड़े वक्त यही तो कामआएंगी।
आओ कुछ दुआएँ इकट्ठी करते हैं…..