एक गलती ( लघु कथा)
एक गलती ( लघु कथा)
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दयाशंकर के चौथे बेटे की शादी का जब अवसर आया तो समस्या यह खड़ी हुई कि बहू के लिए कमरा कहां बनवाया जाए ? पूरा घर छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट चुका था । सब जगह कमरे बने हुए थे । आंगन के नाम पर कुछ बचा नहीं था ।
“ऐसा करो !अपना कमरा बहू को दे देते हैं। हम लोग जो कबाड़ वाला टीन का कमरा है, उसमें खटिया डाल लेंगे ।” – पत्नी ने जब यह कहा तो दयाशंकर के रोंगटे खड़े हो गए।
बोले” क्या कह रही हो? वह कोई रहने लायक जगह है?”
” अब शादी भी तो करनी है… और हमारा क्या ,जैसे भी रह लेंगे लेकिन बहू के लिए तो कुछ ठीक-ठाक कमरा होना ही चाहिए।”
दयाशंकर सोच में पड़ गए । उन्हें याद आया आज से 25 साल पहले का वह दौर, जब घर में बहुत बड़ा आंगन था और आंगन में अमरूद का एक बड़ा सा पेड़ भी था। दयाशंकर और उनके पांचों भाई खूब अमरूद के पेड़ पर चढ़- चढ़ कर अमरुद तोड़ते थे और खाते थे । दिन भर घर में उधम चौकड़ी मची रहती थी । गर्मियों में भी खूब ठंडी हवा आंगन में चलती थी और सब चारपाई डाल कर बैठते थे। छिड़काव करते थे। छत खुली हुई थी। छत पर कोई कमरा आदि नहीं बना था। क्या जमाना था ! दयाशंकर ने ठंडी सांस ली …फिर छह भाइयों में सब कुछ बँट गया । छोटे छोटे कमरे सब के हिस्सों में आए। दो भाई तो बाहर नौकरी पर चले गए ।बचे चार ,उनमें से भी एक ने अपना अलग मकान बना लिया। तीन भाइयों में घर बड़ा होते हुए भी जब बँटा तो आंगन कुछ नहीं बचा ।
दयाशंकर ने अपनी पत्नी से कहा” काश! हमने 25 साल पहले परिवार के बारे में कुछ सोचा होता ! अपनी आमदनी को सोच कर अपने परिवार को बढ़ाया होता , तो आज यह दिन न देखना पड़ता ”
पत्नी ने कहा “सचमुच अगर हमारे सिर्फ एक बच्चा होता तो कोई समस्या नहीं आती। कितना बड़ा घर होता और कितना सुखी परिवार होता। अब क्या किया जाए ! ”
“चलो -चलो ! कबाड़ वाले टीन के कमरे में खटिया डालने का इंतजाम करो।” दयाशंकर ने अपने आंसू छिपाते हुए पत्नी से कहा ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर( उत्तर प्रदेश )मोबाइल 99976 15451